श्रावण माह प्रकृति और देवों के देव महादेव को समर्पित है। हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक यह वही माह है जब समुद्रमंथन हुआ था। समुद्र मंथन में कई दिव्य वस्तुओ के साथ विष भी निकला था, जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में रखकर इस संपूर्ण सृष्टि को बचाया था।
जब शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण किया तो उनका कंठ नीला हो गया। इसलिए भगवान शिव को नीलकंठेश्वर महादेव भी कहा जाता हैं। नीलकंठेश्वर महादेव की पूजा यदि श्रावण माह में की जाए तो व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि श्रावण माह में शिवलिंग पर जल इसीलिए अर्पित करते हैं ताकि शिव के कंठ में मौजूद विष के प्रभाव को कम किया जा सके। शिवपुराण में इस बात का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसलिए शिव भक्त श्रावण माह में शिवलिंग पर जल अर्पित कर अपनी मनोकामानाओं की पूर्ति का वरदान मांगते हैं।
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वैसे तो श्रावण माह शिव का माह है लेकिन इस माह में प्रकृति भी मेहरबान रहती है। श्रावण माह में प्रकृति भी हरियाली की चादर ओढ़ चुकी होती है। इस माह में श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की आराधना करना शुभ माना जाता है।
जिसमें श्रावण माह के प्रथम सोमवार को कच्चे चावल से, दूसरे सोमवार को तिल से, तीसरे सोमवार को खड़े मूंग से, चौथे सोमवार को जौ से और पांचवे सोमवार को सत्तु अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने पर भगवान शिव की कृपा शिवभक्त पर जरूर बरसती है।
भगवान शिव को भोले दानी कहा जाता है, उन्होंने दैत्यों पर प्रसन्न होकर उन्हें भी वरदान प्रदान किये थे। जिसके कारण वे भोले भंडारी कहलाये।
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