त्रिकोण यन्त्र पर स्थित विन्ध्यासिनी देवी तीन रूपों को धारण करती हैं जो की महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली हैं। विंध्यवासिनी देवी ने इस पर्वत पर मधु तथा केटभ नाम के असुरों का नाश करने के लिए स्थान लिया था और तब से वह यहीं विराजमान हैं। देवी यहां अपने उपासकों को मनवांछित फल प्रदान करती हैं। कहा जाता है की यह स्थान इतना शक्ति शाली है की सृष्टि के आरम्भ से पूर्व और प्रलय आने के बाद तक भी इस स्थान को कोई हानि नहीं पहुंचेगी। यहां केवल संकल्प करने से ही इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं।
नवरात्र में कराएं कामाख्या बगलामुखी कवच का पाठ व हवन, पाएं कर्ज मुक्ति एवं शत्रुओं से छुटकारा
माँ का शक्तिपीठ होने के कारण इस स्थान की बहुत मान्यता है। पूरे वर्ष यहां भक्तों का ताता लगा रहता है। अपनी इच्छापूर्ति शक्तियों को लेकर प्रसिद्ध यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए किसी आशीर्वाद से काम नहीं है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी देवी की मातृभाव से उपासना करते हैं जिसके कारण ही वह सृष्टि की व्यवस्था करने में समर्थ होते हैं। माता के विंध्यांचल मंदिर में स्वयं प्रकट होने के कारण यह मंदिर शक्तिस्थल नाम से भी विख्यात है। चैत्र व शारदीय नवरात्रि के अवसर पर यहां देश भर से लोगों का समूह जुटता है।
नवरात्रि के दिनों में यहां देवी की पूजा का भव्य रूप से आयोजन किया जाता है। मंदिर की बहुत सुन्दर तरीकों से सजावट की जाती है और श्रद्धालुओं के पूजा पाठ का भी अच्छा इंतेज़ाम किया जाता है। कहते हैं की नवरात्रि के समय दुर्गा सहस्त्रनाम का पाठ करने से व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और उसके जीवन की विभिन्न परेशानियां दूर हो जाती हैं, देवी विंध्यवासिनी की कृपा उनपर सदैव ही बनी रहती हैं। सच्चे मन से की गयी माँ की पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती, उनके दर्शन मात्र से ही भक्तगण स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं।
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