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शनि के अभिषेक से होंगी भक्तों की नैया पार

MyJyotish Expert Updated 01 Mar 2024 04:13 PM IST
Devotees of Saturn will cross their eyes
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शनि देव शनि ग्रह का प्रतिनिधित्व करते है। शनि ग्रह के अनेकों आख्यान पुराणों से प्राप्त होता है। शनि ग्रह को दुःख एवं व्यथा दायक ग्रह के रूप में जाना जाता है। शनि देव कलियुग के न्यायधीश भी कहे जातें है। अर्थात यह प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्म के आधार पर दण्डित एवं फल प्रदान करतें है। उनकी दृष्टि में कोई बड़ा या छोटा नहीं है। सभी के लिए उनके नियमों की सूचि समान रूप से ही बनाई गई है। शनिवार के दिन पर भक्तों को वह अवसर प्राप्त होता है , जिस दिन वह कम प्रयासों के साथ ही शनि ग्रह के दुष्प्रभावों को दूर करने में सफल हो पातें है।



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शनि देव को प्रसन्न करने हेतु सबसे सरल उपाय है शनि देव पर सरसों का तेल अर्पित करना। मान्यताओं के अनुसार शनि देव को सरसों के तेल से खुश करने की प्रथा हनुमान जी द्वारा ही प्रारम्भ की गई थी। कथन अनुसार रामायण काल में रावण ने सभी देवताओं एवं ऋषियों को अपने कारावास में कैद कर लिया था। शनि देव भी उन में से एक थे जिन्हे रावण ने उल्टा लटका कर कैद में रखा हुआ था। जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका पहुंचे तो इन देवताओं एवं ऋषियों के कैद में होने की अनुभूति उन्हें हुई। इसके बाद रावण के अहंकार को चूर कर सभी देवताओं एवं ऋषियों को मुक्त करने के लिए उन्होंने लंका को अग्नि की ज्वाला में प्रज्वलित कर दिया। जिसके कारण सभी ऋषि एवं देवता अपने कारावास से आज़ाद हो गए थे।

शनि साढ़े साती पूजा - Shani Sade Sati Puja Online

कारावास में उल्टा - लटका रहने के कारण शनि देव के शरीर में बहुत पीड़ा हो रही थी। जब इस बात का पता हनुमान जी को लगा तो शनि देव का कष्ट दूर करने के लिए उन्होंने सरसों के तेल से उनकी मालिश की थी। इससे शनि देव के शरीर की पूर्ण पीड़ा दूर हो जाती है। अपने दर्द से मुक्त होकर शनि देव बहुत खुश हुए और हनुमान जी को आशीर्वाद प्रदान किया। तभी से किसी भी व्यक्ति को यदि शनि की साढ़े साती , शनि की ढैय्या एवं अष्टम शनि के दुष्प्रभावों से मुक्ति प्राप्त करनी होती है तो वह शनि को सरसों का तेल प्रदान करतें है इससे उसके सभी दुःख दूर हो जातें है।

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