सूर्योपनिषद की माने तो सारे जगत का पालन सूर्य ही करते हैं। इसी कारण सूर्य को मनुष्य के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण बताया गया हैं। वैदिक काल से ही सूर्योपासना की जा रही हैं। जीवन में सुख , धन और बैरियों से सुरक्षा के लिए सूर्यनारायण की पूजा होती आयी है । हिन्दू धर्म में आदिपंच देवों में से एक देव सूर्य को माना गया हैं। सूर्य देव कलयुग के एकमात्र प्रत्यक्ष देवता माने गए हैं। इसलिए रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित किया गया हैं।
यदि नौकरी या व्यवसाय में किसी भी प्रकार की सफलता नहीं मिल पा रही है या नुकसान हो रहा हैं तो ऐसे में भगवान सूर्य की पूजा करना लाभकारी हैं । इससे सारे बिगड़े काम बन जाते हैं । सूर्य को ब्रह्माण्ड की आत्मा भी कहा गया हैं । भगवान सूर्य की आराधना के लिए रविवार का दिन सुनिश्चित हैं । लोग अलग - अलग तरिके से सूर्यदेव की पूजा करते है , कोई जल चढ़ाकर तो कोई रविवार का व्रत रखकर । रविवार के दिन व्रत का विशेष महत्व है , आइए जानते है कैसे रखा जाता है व्रत।
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रविवार का व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार से शुरू करें और एक वर्ष अथवा 21 या 51 रविवार तक रखें ।
रविवार के दिन सुबह स्नान आदि करके लाल वस्त्र धारण करें लें एवं माथे पर लाल चन्दन का तिलक लगा ले और तांबे के कलश में जल लेकर उसमे रोली, अक्षत, लाल पुष्प डालकर श्रद्धापूर्वक सूर्यनारायण को अर्ध्य दे साथ ही “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:” इस मंत्र का जाप करें।
इस दिन भोजन सूर्यास्त होने से पहले कर लें । भोजन में गेहूं की रोटी अथवा गेहूं का दलिया बनाए ,भोजन से पूर्व भोजन का कुछ भाग मंदिर में दे या बच्चों को खिलाए। भोजन में कोई पकवान या स्वादिष्ठ खाना न बनाए सामान्य भोजन ही करें । भोजन में नमक न ड़ाले।
अंतिम रविवार को व्रत का उद्यापन करने का विधान है । उद्यापन में ब्राह्मण से हवन करवाए। हवन क्रिया के पश्चात योग्य दम्पति को भोजन कराकर लाल वस्त्र एवं दक्षिणा प्रदान करें । इस प्रकार आपके सूर्य व्रत पूरे माने जाएंगे।
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