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Home ›   Blogs Hindi ›   sindhara duj festive puja vidhi mahatva significance

जानिए सिंधारा दूज त्यौहार कब मनाया जाता है और इसकी सही पूजन विधि

ज्योतिषाचार्य राज रानी Updated 06 Oct 2021 07:53 PM IST
sindhara parv
sindhara parv - फोटो : google
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सिंधारा दूज शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला पर्व है अपने नाम अनुरुप ही ये पर्व सौभाग्य एवं सुख को प्रदान करने वाला होता है. इसे चैत्र एवं आश्विन नवरात्रि के समय पर विशेष रुप से मनाया जाता है. नवरात्रि के दूसरे दिन उत्तरी भारत के सभी हिस्सों में महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक आम्चलिक पर्व है जो संस्कृति एवं श्रद्धा का प्रतिक बनता है. इस अवसर पर महिलाएं अपने जीवन में वैवाहिक सुख एवं मांगल्य की कामना करती हैं. यह एक शुभ समय होता है जिस प्रकार तीज या अन्य व्रत मांगलय सुख को बनाए रखने हेतु किए जाते हैं उसी प्रकार इस व्रत का पालन भी बहुत ही विश्वास के साथ किया जाता है. कुछ महिलाएं इस दिन उपवास करती है तो कुछ पूजा नियमों का पालन करती हैं अपनी अपनी परंपराओं के अनुसार इस दिन को कई क्षेत्रों में मनाया जाता है. पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना ओर परिवर के सुख की इच्छा हेतु स्त्रियां इस व्रत को करती हैं. 

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सौभाग्य एवं सुखी जीवन का आशीष 

देश भर के अनेक हिस्सों में  सिंधारा दूज को बहुत उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. कुछ स्थानों में, महिलाएं एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेलती हैं तो कुछ स्थानों पर सौभाग्य की वस्तुओं का आदान-प्रदान किया जाता है. पारंपरिक रिति रिवाजों के अनुरुप प्रात:काल से ही इस पर्व से जुड़े कार्य आरंभ हो जाते हैं. स्नान इत्यदै से निवृत होकर साफ वस्त्र धारण करके माता पार्वती का पूजन किया जाता है. देवी भगवती को फल- फूल एवं मिष्ठान इत्यादि अर्पण किया जाता है. इसी के साथ शृंगार से जुड़ी वस्तुओं को भी माता को भेंट किया जाता है. श्रद्धा के साथ गौरी पूजा की जाती है,
सिंधारा दूज को सौभाग्य दूज, गौरी द्वितिया या स्थान्य वृद्धि के रूप में भी जाना जाता है.  इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की  पूजा की जाती है.  विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और कल्याण के लिए पूरे समर्पण के साथ सिंधारा दूज के सभी अनुष्ठान करती हैं. अविवाहित लड़कियां इस दिन एक अच्छा पति और आनंदमय वैवाहिक जीवन पाने के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं.


सिंधारा दूज पूजा 

सिंधारा दूज के शुभ त्यौहार पर, महिलाएं पारंपरिक वस्त्र धारण करती हैं व सौभाग्य सूचक वस्तुओं को धारण करती हैं. इस दिन विशेष रुप से हाथों और पैरों पर मेहन्दी लगाती हैं या फिर आलता लगाया जाता है. हरी व लाल रंग की चूड़ीयां इस उत्सव का अभिन्न अंग होती हैं. इस दिन सास अपनी बहुओं को सौभाग्य की वस्तुएं एवं अन्य चीजें भेंट देती है. संध्या समय पर माता गौरी की पूजा करने के बाद, वह अपनी सास को यह ‘बाया’ भेंट किया जाता है. दक्षिण भारत में, कुछ स्थानों पर महेश्वरी सप्तमत्रिका पूजा सिंधारा दूज के दिन की जाती है. यह महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है, क्योंकि वे एक सुखी और आनंदित विवाहित जीवन का आशीर्वाद पाती हैं. 

बहुत उत्साह और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला ये त्यौहार अनिवार्य रूप से महिलाओं का त्योहार है, जिसमें वे एक-दूसरे पर उपहार देती हैं.

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