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जानें श्रावण मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा का महत्व, क्या है इनके पीछे की कथा

my jyotish expert Updated 17 Aug 2021 12:58 PM IST
putrda ekadashi 2021
putrda ekadashi 2021 - फोटो : Google
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श्रावण माह में देवो के देव महादेव  की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती हैं। महाकल(lord shiva)आदि हैं और अंत भी। उनसे ही जीवन है तथा मृत्यु भी। उनकी रूद्र रूप से तो काल भी डरते हैं क्योंकि शिव शंभू स्वयं महाकाल हैं। इस श्रावण माह में शिव पूजा के साथ-साथ पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है। वे जातक जो दाम्पत्य जीवन में संतान सुख से वंचित हैं, उनके हेतू सावन पुत्रदा एकादशी बहुत ही विशेष महत्वपूर्ण होती है। श्रावण पुत्रदा एकादशी के नाम से ही व्रत के उद्देश्य के बारे में पता लगता है सरल भाषा मे कहे तो पुत्र को देने वाली एकादशी।  मान्यता है कि, जो जातक एकादशी व्रत करते हैं उन्हें संतान की प्राप्ति शीघ्र अति शीघ्र होती है। श्रावण पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत रखते हुए जगत पालनहार भगवान विष्णु की आराधना की जाती है एंव भगवान कृष्ण के बाल स्वरुप की पूजा करते हुए संतान की मनोकामना करते हैं। इस साल यह पुत्रदा एकादशी 18 अगस्त दिन बुधवार को है।

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अब हम जानेंगे कि श्रावण पुत्रदा एकादशी के पीछे कथा "क्या" है ?

द्वापर युग के प्रारंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी हुआ करती थी, जिसमें महीजित नामक  राजा शासन करता था, परंतु पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं महसुस होता था। राजा के अनुसार  जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक तथा परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति हेतू राजा द्वारा अनेक उपाय किए गये परंतु राजा को पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। वृद्धावस्था कि उम्र आती देख राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया एंव बोला- हे प्रजाजनों, मेरे खजाने में अन्याय से अर्जित किया गया धन नहीं है और नही कभी मै देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है।

किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं लिया फिर भी प्रजा को पुत्र के समान ही पालता रहा। मैं अपराधियों को पुत्र और बाँधवों जैसा दंड देता रहा। कभी किसी से  मैने घृणा नहीं की, सभी को समान माना है। सज्जनों की सदा पूजन किया। परंतु फिर भी इस तरह धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पुत्र नहीं है। इसलिए मैं अत्यंत दु:खी  हूँ, आखिर इसका क्या कारण है? राजा महीजित की ऐसी बात को विचारने के लिए मंत्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहाँ जाकर बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए तथा राजा की उत्तम कामना की पूर्ति हेतू किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे।

एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, एंव समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनके कल्प के व्यतीत होने से एक रोम गिरता था । सभी ने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को व्यथा देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह रहे मैं आप लोगों का अवश्य हित करूँगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए ही हुआ है, इसीलिए संदेह मत करो। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सभी लोग बोले- हे महात्मा आप हमारी बात जानने में तो ब्रह्मादेव से भी अधिक समर्थ हैं। इसलिए आप हमारे इस संदेह को भी दूर करें । महिष्मति पुरी का राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है लेकिन फिर भी पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है ।

उन मंत्री ने कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। इसलिए उनके  दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन मात्र से हमें पूर्ण विश्वास हो गया कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा। क्योंकि शास्त्रों में कहा गया कि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब कृपा करके महात्मा राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाये। ऋषि लोमहर्षक मंत्री द्वारा विनती करने पर उपाय बताते हुए कहा कि सावन मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा व्रत को रखें। इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। इसलिए संतान सुख की इच्छा प्राप्त करने वाले इस व्रत को अवश्य करें एंव इसके माहिमा को सुनने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ती हो जाती है साथ ही साथ इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

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