माँ गंगा की उद्गम स्थली गंगोत्री उत्तराखंड के उत्तरकाशी में स्थित है। हर साल मई से अक्टूबर महीने के बीच पतित पावनी गंगा मैया के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। गंगा मैया को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। माना जाता यह सभी के पापों को धोती हैं। गंगोत्री धाम की पौराणिक कथा बहुत कम लोगों को पता है , आइए जानते है इस पवित्र धाम की पौराणिक कथा ।
गंगा मैया का धरती पर कैसे आयी इसके बारे में यह कहा जाता है की , राजा सागर बहुत ही धार्मिक प्रवृति के राजा थे। धर्म-कर्म के कार्यों से उनकी प्रतिष्ठा दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ रही थी। उनके इस धर्म-कर्म से देवराज इंद्र को लगने लगा कि कहीं उनका सिंहासन न छीन जाए। उन्होंने छल कपट की नीति को अपनाया और राजा सागर के अश्वमेघ के अश्व को चुरा कर कपिलमुनि के आश्रम में बांध दिया। अश्व न मिलने पर राजा सागर ने अपने 60000 पुत्रों को उस अश्व को ढूंढ कर लाने का आदेश दिया।
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कपिलमुनि के आश्रम में अश्व बंधा देखकर उन्होंनें कपिलमुनि की तपस्या को भंग कर दिया और उन पर चोरी का आरोप लगा दिया जिससे कपिलमुनि क्रोधत हो उठें। उन्होने अपनी क्रोधाग्नि से राजा सागर के 60 हजार पुत्र भस्म कर दिया। इसके पश्चात राजा सागर के पौत्र अंशुमन फिर अंशुमन के पुत्र दिलीप ने ब्रह्मा की तपस्या कर गंगा को धरती पर लाने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली। दिलीप के पुत्र भागीरथी हुए जो काफी कठिनाइयों के बाद गंगा को धरती पर लाने में कामयाब हुए।
भगवान शिव की जटाओं से निकलकर पृथ्वी पर जहाँ गंगा का अवतरण हुआ वह स्थान आज गंगोत्री कहलाता है। जिसे हम गंगा का उद्गम स्थल कहते हैं।
गंगोत्री धाम का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान गंगोत्री मंदिर ही है। इसके अलावा यहां गौमुख, मुखबा गांव, भैरो घाटी और नंदनवन तपोवन भी दर्शनीय स्थान है।कहा जाता है यहाँ पर आदी शंकराचार्य ने गंगा देवी की एक मूर्ति को स्थापित किया था, जिससे आगे चलकर गंगोत्री मंदिर का निर्माण हुआ ।
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