लकड़ी की प्रतिमाओं वाला देश का यह अनोखा मंदिर-
हिंदु देवी-देवताओं की प्रतिमाएं अक्सर पत्थर या किसी धातु से निर्मित होती हैं। मगर आश्चर्य की बात यह हैं कि विष्णु के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्र की काठ की प्रतिमा हैं। लोगों की माने तो वास्तव में इस मंदिर में भगवान विष्णु की चार हाथों वाली प्रतिमा थी जिसे नीला माधव के नाम से भी जाना जाता हैं। मगर मुगल शासकों द्वारा कई बार इस मंदिर पर हमला किया गया जिस कारण वह प्रतिमा कई बार क्षतिग्रस्त हो गई थी। पुरी के महाराज ने तब फैसला लिया कि इस प्रतिमा को किसी एसी वस्तु से बदला जाए जिसे अगर बार बार बनाने की ज़रुरत पड़े तो आसानी से बन जाए। मौजूदा प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से निर्मित हैं।
हर 12 साल में श्री कृष्ण के धड़कते दिल को नई प्रतिमा में स्थापित किया जाता हैं-
मंदिर में स्थापित तीनों मूर्तियों को हर 12 साल में नई मूर्तियों से बदला जाता हैं। इस प्रक्रिया से जुड़ी कई रहस्यमय बातें हैं। जब मूर्तियां बदली जाती हैं तो शहर भर की बिजली काट दी जाती हैं और मंदिर के आस पास पूर्णत: अंधेरा कर दिया जाता हैं। सीआरपीएफ की टीम सुरक्षा हेतु तैनात की जाती हैं और उस वक्त मंदिर में सिर्फ मूर्तियां बदलने वाले पुजारी को जाने की अनुमति होती हैं जिसकी आंखों पर भी पट्टी बांधी जाती हैं, और हाथों में दस्तानें पहनाए जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार पुरानी प्रतिमाओं में से उस ब्रह्म पदार्थ यानि श्री कृष्ण के ह्रदय को निकालकर नई मूर्ति में लगा दिया जाता हैं। इस ब्रह्म पदार्थ के बारे में ज़्यादा जानकारी किसी को नहीं हैं। पर माना जाता हैं कि यह किसी प्रकार का जीवित पदार्थ हैं। कहा जाता हैं अगर किसी ने इसे देख लिया तो उस व्यक्ति के शरीर के चीथड़े उड़ जाएंगे।
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मंदिर में कैद हैं और भी कई रहस्य-
रसोई का रहस्य -: जगन्नाथ मंदिर की रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई हैं। जब भक्तों के लिए प्रसाद बनाया जाता हैं तो लकड़ी के चूल्हे पर एक के ऊपर एक सात बर्तन रख दिए जाते हैं, मगर हैरानी की बात तो यह हैं कि सबसे पहले सातवें यानि सबसे ऊपर रखें बर्तन में प्रसाद बनता हैं और सबसे आखिर में पहले बर्तन का। इसके अतिरिक्त अगर लाखों लोग भी आ जाए तो यहां प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता हैं। मगर जैसे ही द्वार बंद करने का समय आता हैं प्रसाद अपने आप खत्म हो जाती हैं।
झंडे का रहस्य -: दिन के किसी भी वक्त इस मंदिर के किसी भी हिस्से की परछाई ज़मीन पर नहीं पड़ती हैं। इसके अलावा मंदिर में हर रोज़ शिखर पर लगे झंडे को बदलने का नियम हैं अगर एसा नहीं हुआ तो शायद अगले 18 साल के लिए मंदिर बंद हो जाएगा। एवं यह झंडा हमेशा हवा से विपरीत दिशा में उड़ता हैं।
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