हिंदी पंचांग के अनुसार फिलहाल सावन का महीना चल रहा है। इसकी शुरुआत 25 जुलाई से हुई थी और 22 अगस्त को रक्षा बंधन के साथ इसका समापन हो जाएगा। इसके पश्चात हिंदी वर्ष के छठे महीने यानी भाद्रपद की शुरुआत हो जाएगी। भाद्रपद का महीना आरंभ होते ही श्री कृष्ण के सभी भक्तों को केवल एक ही चीज़ का इंतज़ार रहते है और वो है कृष्ण जन्माष्टमी। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि कृष्ण अष्टमी या कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया था।
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हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी के त्यौहार को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान श्री कृष्ण के सभी मंदिरों को खूब अच्छे से सजाया जाता है और चारों ओर हर्षोल्लास का माहौल होता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म आधी रात में हुआ था। इसलिए मध्य रात्रि में ही भक्त श्री कृष्ण के जन्म का जश्न मनाते हैं। उदया तिथि के दिन पूजा करने का और व्रत रखने का विधान होता है।
धार्मिक दृष्टि से इस पूजा और व्रत को बहुत महत्वपूर्ण बताया जाता है। कहते हैं कि श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए ये दिन सर्वोत्तम होता है। यदि साधक इस दिन श्री कृष्ण को प्रसन्न करने से सफल होते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके साथ ही व्यक्ति के जीवन से सभी कष्टों और दुखों का निवारण होता है। अगर आप भी श्री कृष्ण को प्रसन्न करना चाहते हैं तो विधिवत रूप से उनकी पूजा करें और व्रत रखें। तो आइए जानते हैं इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी किस दिन पड़ रही है और इस दिन पूजा करने की सही विधि क्या है।
कृष्ण जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
इस वर्ष भाद्रपद की अष्टमी तिथि 30 अगस्त सोमवार के दिन पड़ रही है। इसी दिन कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। अष्टमी तिथि की शुरुआत 29 अगस्त को रात्रि 11 बजकर 25 मिनट पर हो जाएगी। इसका समापन 30 अगस्त को रात्रि 01 बजकर 59 मिनट पर होगा। श्री कृष्ण की पूजा करने का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त को रात्रि 11 बजकर 59 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। इस आधार पर पूजा करने की अवधि कुल 45 मिनट की होगी।
पूजा की विधि
पूजा स्थल पर एक छोटी सी चौकी लेकर उसपर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं। इसके पश्चात उसके ऊपर एक खाली पात्र रख दें। इस पात्र में श्री कृष्ण की मूर्ति को स्थापित करें। इसके बाद दीप प्रज्ज्वलित करें और साथ में ही धूप भी जलाकर रख दें। भगवान श्री कृष्ण को अपने मन में याद करते हुए उन्हें आमंत्रित करें और आपके पूजन को स्वीकार करने की याचना करें। इसके बाद श्री कृष्ण की मूर्ति का पहले पंचामृत से अभिषेक करें और फिर उन्हें गंगाजल से स्नान करवाएं। श्री कृष्ण की मूर्ति को वस्त्र धारण करवाएं तथा उनका साज-श्रृंगार करें। फिर उन्हें पहले दीप दिखाने के बाद धूप बत्ती दिखाएं। श्री कृष्ण का तिलक करने के लिए अष्टगंध चंदन अथवा रोली का उपयोग करें। टीके के साथ अक्षत लगाना ना भूलें। इसके बाद श्री कृष्ण की पसंद कि चीज़ें उन्हें भोग के रूप में अर्पित करें। इसके लिए आप मुख्य रूप से माखन का उपयोग कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त आप इन्हें फल, मिश्री और मिठाई भी चढ़ा सकते हैं। इन सब के साथ अन्य पूजा सामग्री भी अर्पित करें जिसमें तुलसी का पत्ता अवश्य चढ़ाएं। इसके साथ श्री कृष्ण के पीने के लिए गंगाजल भी अर्पित करें। अब श्री कृष्ण को उनके बाल रूप में याद करें और सोचें कि वो पीपल के पत्ते पर विश्राम कर रहे हैं और अंगूठा चूस रहे हैं। श्री कृष्ण के नाम का जाप करें। उनके नाम का जाप करते हुए उस नाम के अर्थ का भी स्मरण करें। कृष्ण का अर्थ है वो जो मोक्ष को अपनी ओर आकृष्ट करे। अंततः श्री कृष्ण से प्रार्थना करें। चौकी पर पुष्पादि चढ़ाएं और श्री कृष्ण को धन्यवाद कहें और साथ ही किसी भी भूल के लिए क्षमा याचना करें।
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