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16 दिन ही क्यों मनाया जाता है पितृपक्ष, जानिए क्या है इन सभी तिथियों का महत्व

my jyotish expert Updated 23 Sep 2021 11:26 AM IST
shradh 2021
shradh 2021 - फोटो : google photo
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सोमवार से पितृपक्ष प्रारंभ हो गए हैं। अनंत चुतर्द्शी पर गणेशोत्सव के समापन के साथ ही पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष प्रारंभ हो जाता है, जो आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। हिंदू धर्म में वैदिक परंपरा के अनुसार 16 दिन की अवधि में लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिण्डदानकरते हैं। इस साल 20 सितंबर से शुरु हुए पितपक्ष का समपान 16 दिन बाद 6 सिंतबर को होगा। लेकिन आखिर पितृपक्ष 16 दिन के ही क्यों होते हैं, चलिए जानते हैं इसके पीछे का कारण।

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हिंदूओं में जातक के गर्भधारण से लेकर मृत्योपरांत तक अनेक प्रकार के संस्कार किये जाते हैं। अंत्येष्टि को अंतिम संस्कार माना जाता है। लेकिन अंत्येष्टि के पश्चात भी कुछ ऐसे कर्म होते हैं जिन्हें मृतक के संबंधी विशेषकर संतान को करना होता है। श्राद्ध कर्म उन्हीं में से एक है। वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इसलिये अपने पूर्वज़ों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के इस पर्व को श्राद्ध कहते हैं।

पितृपक्ष के 16 दिनों का विशेष महत्व- पितृपक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तक 16 दिन का होता है। पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या। श्राद्ध की 16 तिथियां हैं। धर्मशास्त्रों की मानें तो प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु इन 16 तिथियों को छोड़कर अन्य किसी दिन नहीं होती। यानि कि जब किसी की मृत्यु होती है तो उस दिन इन 16 तिथियों में से कोई एक तिथि अवश्य होती है। इसलिए तिथि के हिसाब से हर दिन अलग-अलग लोगों के लिए श्राद्ध होता है। 

ऊपर बताई गई 16 तिथियों में से एक तिथि में यदि किसी की मृत्यु होती है चाहे वह कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। श्राद्ध में जब यह तिथि आती है तो जिस तिथि में जातक की मृत्यु हुई है उस तिथि में उसका श्राद्ध करने का विधान है। इसलिए इन 16 तिथियों के 16 दिन होते हैं। है। अगर किसी मृत व्यक्ति के मृत्यु की तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है। तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति का श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। इस अवधि में हम अपने पितरों को नमन करते हैं और उनतक अपने भाव पहुंचाते हैं। इस समय सूर्य कन्या राशि में रहता है और यह ज्योतिष गणना पितरों के अनुकूल होती है। इसलिए भी इन 16 दिनों का खास महत्व है।

पितृपक्ष से जुड़ी एक और मान्यता प्रचलित है। जिसके अनुसार यह पक्ष वर्षाकाल के बाद आता है। माना जाता है कि इस समय आकाश पूरी तरह से साफ हो जाता है और हमारी संवेदनाओं-प्रार्थनाओं के लिए आवागमन का मार्ग सुलभ है। 

पितृपक्ष पर अपने वंशजों के पास आते हैं पूर्वज- पुराणों के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का अवसर मिलता है और वह पिंडदान, अन्न एवं जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के पास रहते हैं। इन दिनों मिले अन्न, जल से पितरों को बल मिलता है और इसी से वह परलोक के अपने सफर को तय कर पाते हैं। इन्हीं अन्न जल की शक्ति से वह अपने परिवार के सदस्यों का कल्याण कर पाते हैं। यदि उनका श्राद्ध नहीं किया जाता तो वह कुपित होकर अपने वंशजों को श्राप देकर वापस लौट जाते हैं। इसलिए पितृपक्ष के दौरान फूल, फल और जल आदि के मिश्रण से तर्पण देने का विशेष महत्व है।


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