श्राद्धपक्ष में पितरों को भोजन कराने के साथ-साथ पीपल के वृक्ष की महत्वता जानना जरूरी है । मान्यता है कि पूर्वजों का पीपल के पेड़ में वास होता है । भगवान श्री कृष्ण गीता का ज्ञान देते समय अर्जुन को कहा था कि मैं वृक्षों में पीपल हूं । गौतम बुद्ध ने पीपल के पेड़ के नीचे ही अपना धर्म स्थापित किया था।
घर बैठें श्राद्ध माह में कराएं विशेष पूजा, मिलेगा समस्त पूर्वजों का आशीर्वाद
पीपल ब्रह्मा, विष्णु, महेश का एक रूप माना जाता है । पानी को शुद्ध करने के लिए जल पात्रों में ताजे पीपल के पत्ते डालने की प्रथा प्रचलित है। वैज्ञानिकों ने भी माना है कि सिर्फ पीपल का वृक्ष ही एक ऐसा वृक्ष है 24 घंटे में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन छोड़ता है।
पीपल को खाद नहीं चाहिए होती । वह दीवारों में भी उग जाता है । वह हवा की नमी से ही अपना भोजन बना लेता है। जो भी व्यक्ति पितृ दोष से ग्रसित है उन्हें श्राद्ध पक्ष में पीपल को जल सीचना चाहिए। इसी से हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं और हम पर कृपा करते हैं।
जो व्यक्ति ध्यान योग से पितरों को शांत करना चाहते हैं उन्हें पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर यह क्रिया करनी चाहिए। पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने के साथ ही पीपल के वृक्ष की जड़ को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए। साथ ही शाम के वक्त दीपक जलाना चाहिए क्योंकि मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर पूर्वजों का वास होता है।
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पीपल कै पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान-साधना और ईश्वर की आराधना करने से जीवन से जुड़ी सभी बाधाएं दूर होती हैं और मनोकामाएं पूरी होती हैं। इस उपाय को अमावस्या के दिन करने से शीघ्र लाभ होता है और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति भी होती है।
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