पितृदोष के संबंध में ज्योतिष और पुराणों की अलग अलग धारणा है लेकिन यह तय है कि यह हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा दोष है। पितृदोष के कारण हमारे सांसारिक जीवन में और आध्यात्मिक साधना में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। हमारे पूर्वजों का लहू, हमारी नसों में बहता है। हमारे पूर्वज कई प्रकार के होते हैं, क्योंकि हम आज यहां जन्में हैं तो कल कहीं ओर।
पितृ दोष के कई कारण और प्रकार होते हैं। पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही पितृदोष माना गया है। ऐसा नहीं है और भी कई कारणों से यह दोष प्रकट होता है। इसे पितृ ऋण भी कह सकते हैं। आइये जानते हैं कि पितृदोष और ऋण क्या होता है। जानने में ही समाधान छुपा हुआ है।
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ज्योतिष के अनुसार पितृ दोष और पितृ ऋण से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त मामा-मामी मौसा-मौसी, नाना-नानी तथा पितृपक्ष अर्थात दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। इसके अलावा भी अन्य कई स्थितियां होती है।
हालांकि इसके अलावा व्यक्ति अपने कर्मों से भी पितृदोष निर्मित कर लेता है। विद्वानों ने पितृ दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया है। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु 4-8-12वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितृ दोष पिछले जन्म (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है।
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वैदिक ज्योतिषी की माने तो पित्र दोष का कारण यह है कि हमारे अपने पूर्वजों की मृत्यु के उपरांत किए जाने वाले संस्कार, श्राद्ध आदि उचित प्रकार से नहीं किया जाना। जिसकी वजह से हमारे पूर्वज यानी पितृ नाराज हो जाते हैं । और यह ही पितृदोष बनके हमारी कुंडली में उपस्थित हो जाता है और हमारे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्या उत्पन्न करते हैं। यह समस्या धन से संबंधित हो सकती हैं विवाह से संबंधित हो सकती और नए कार्य से संबंधित हो सकती है।
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