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श्राद्ध पक्ष में नारायणबलि - नागबलि पितृ दोष पूजन महत्वपूर्ण क्यों ?

Myjyotish Expert Updated 07 Sep 2020 03:51 PM IST
Pitra Paksh
Pitra Paksh - फोटो : Myjyotish
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पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पण करने का पर्व है श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष। अक्सर हम देखते हैं कि कई लोगों के जीवन में परेशानियां समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती। वह चाहे जितना भी समय और धन खर्च कर लें लेकिन उनका काम सफल नहीं होता। ऐसे लोगों की कुंडली में निश्चित रूप से पितृदोष होता है।

क्या है नारायणबलि और नागबलि श्राद्ध ?

नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।

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इन कारणों से की जाती है नारायणबलि पूजा:

जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।

प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की पूजा जाती है।
परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। 
आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।

क्यों की जाती है यह पूजा ?

शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए:

1: नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म वह  व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वह भी यह विधान कर सकते हैं।

2:संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है।

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3:यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो यह कर्म एक साल तक नहीं  करना चाहिए। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।

पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय:

नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म महाराष्ट्र् में नासिक के समीप स्थित प्रमुख ज्योतिर्लिंग त्रयंबकेश्वर में संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा तीन दिनों की होती है।

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