भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक 16 दिनों का समय श्राद्ध कहलाता हैं । इन 16 दिनों के दौरान जिस तिथि को पूर्वजों की मृत्यु हुई हो , उसी तिथि को उनका श्राद्ध किया जाता हैं। इन 16 दिनों में लोग अपने पितरों को याद कर उनके प्रति अपनी श्रद्धा को दर्शातें हैं । श्राद्ध का उल्लेख कई ग्रंथो में किया गया हैं ,जिसमें पद्म पुराण, लिंग पुराण, मत्स्य पुराण और अग्नि पुराण शामिल हैं। श्राद्ध में तीन पीढ़ियों के पितरों को महत्व दिया गया हैं । इसके पीछे कारण है कि इंसान की स्मरण शक्ति सिर्फ तीन पीढ़ियों तक ही सीमित हैं। यह भी कहा जाता है कि इन दिनों सभी पूर्वज पृथ्वी पर सुक्ष्म रूप में आकर उनके लिए किए गए तर्पण को ग्रहण करते हैं।
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कहा जाता है कि इस दौरान पितृ धरती पर आते है और अपने आशीर्वाद से हमे तृप्त करते हैं । यह 15 दिन लोग अपने पितरों को समर्पित करते हैं । श्राद्ध को लेकर कुछ धारणाएं भी हैं । कहा जाता है कि श्राद्ध में कोई शुभ कार्य नही करना चाहिए । धर्म शास्त्रों के अनुसार ये 16 दिन केवल पितरों को समर्पित करें, उनके तर्पण और उनको याद करने में ही आपका ध्यान होना चाहिए। कहते है अगर आप कोइ शुभ कार्य करतें हैं तो आपका ध्यान उस ओर चला जाएगा ।
कहा जाता है की श्राद्ध पक्ष पूर्ण रूप से पितरों को समर्पित होता हैं। इसलिए जो कोई भी कार्य इस दौरान किया जाता है उसमें पूर्वजों का अंश रह जाता है जो की शुभ नहीं माना जाता। यह 16 दिन शोक के दिन होते है जिसके कारण इस दौरान शुभ कार्य करने से पितृ दुःखी हो जाते हैं।
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मान्यताओं के अनुसार यह कही स्पष्ट नहीं है की हमें शुभ कार्य नहीं करने चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है की यदि हमारे पूर्वज धरती पर आकर हमें खुश एवं शुभ कार्य करतें हुए देखेंगे तो वह प्रसन्न ही होंगे। परन्तु फिर भी अनेकों कथाओं के अनुसार क्योंकि यह समय पूर्ण रूप से हमारे पूर्वजों को स्मरण करने का समय होता है। हमें अपना मन उनके स्वागत एवं श्रद्धापूर्वक तर्पण में ही लगाए रखना चाहिए।
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