ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग,शिव और शक्ति, शक्ति का प्रतीक है। शिव यानि की परम् शुभ और शक्ति को हम प्रकृति कह सकते हैं। शिवलिंग का एक हिस्सा (योनि स्वरुप) शक्ति को समर्पित है। जिसे निर्मली या सोमसूत्र कहा जाता है। सनातन धर्म में विशेष रूप से तंत्र या शक्ति साधना को प्रतीक माना गया है और शक्ति के किसी प्रतीक को लांघना बहुत अशुभ और अपमान जनक माना जाता है और यही कारण है कि शिवलिंग की आधी परिक्रमा की जाती है।
शिव पुराण समेत और कई शास्त्रों में शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का विधि-विधान बताया गया है। इसका धार्मिक कारण यह है कि शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाया जाता है। इस जल को बहुत पवित्र माना गया है। खास बात है कि यह जल जिस मार्ग से निकलता है, उसे निर्मली, सोमसूत्र और जलाधारी कहा जाता है।
क्यों नहीं लांघी जाती है जलाधारी-
ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग इतना शक्तिशाली होता है कि उस पर चढ़ाए गए जल में भी शिव और शक्ति के ऊर्जा के कुछ महत्वपूर्ण अंश मिल जाते हैं। इस जल में इतनी ज्यादा ऊर्जा होती है कि यदि व्यक्ति इसे लांघें तो यह ऊर्जा लांघते समय उसके पैरों के बीच से उसके शरीर में प्रवेश कर जाती है। इसकी वजह से व्यक्ति को वीर्य या रज संबन्धित शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है और यही कारण है कि शास्त्रों में जलाधारी को लांघना पाप माना गया है।
इसकी वैज्ञानिक वजहें क्या हैं-
अगर हम वैज्ञानिक वजहों कि बात करें तो शिवलिंग ऊर्जा और शक्ति का भंडार होते हैं। इनके आसपास के क्षेत्रों में रेडियोएक्टिव तत्वों के अंश भी पाए जाते हैं। काशी के भूजल में यूरेनियम के अंश भी पाए गए हैं। अगर हम भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप देखें तो पता चलता है कि इन शिवलिंगों के आस-पास के क्षेत्रों में रेडिएशन पाया जाता है। यदि आपका ध्यान एटॉमिक रिएक्टर सेंटर की तरफ गया हो तो शिवलिंग के आकार और एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार में आपको कुछ-न-कुछ समानता नजर आएगी। ऐसे समय शिवलिंग पर चढ़े जल में बहुत ज्यादा
ऊर्जा होती है। इसे लांघने से व्यक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जलाधारी को लांघने को मना किया गया है।
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बाईं तरफ से की जाती है चंद्राकार परिक्रमा
शिवलिंग की परिक्रमा के समय भक्त उनकी जलाधारी तक जाकर वापस लौट आतें हैं। ऐसी स्थिति में अर्द्ध चंद्र का आकार बनता है और इसीलिए इस परिक्रमा को चंद्राकार परिक्रमा भी कहा जाता है। ध्यान रहे कि चंद्राकार परिक्रमा के भी कुछ नियम हैं। आमतौर पर परिक्रमा दाईं ओर से की जाती है, लेकिन शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं ओर की तरफ की जाती है, फिर जलाधारी से वापस दाईं ओर लौटना होता है।
विशेष स्थितियों में लांघी जा सकती है जलाधारी-
आपने अक्सर देखा होगा कि कहीं-कहीं पर शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल सीधे जमीन में चला जाता है या कहीं कहीं जलाधारी ढकी हुई होती है। ऐसी स्थिति में शिवलिंग की पूरी परिक्रमा की जा सकती है। यानि कि ऐसी स्थिति में जलाधारी को लांघने में पाप या दोष नहीं लगता है।
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