जो हर व्यक्ति को उसके कर्म का फल देते हैं । जो लोग श्रेष्ठ कार्य करते हैं । उन पर शनिदेव की विशेष कृपा होती है और जो लोग
अनुचित कार्य करते हैं उन्हें शनिदेव दण्ड देते हैं ऐसे लोग शनि देव के दण्ड के भागी होते हैं ।
इस से हम सब अवगत है किन्तु क्या आप जानते हैं? कि शनि देव का जन्म कैसे हुआ था?
वैसे तो शनि देव के जन्म के विषय में अनेक तरह की कथाएँ प्रचलित है ∣ किन्तु स्कंदपुराण के काशीखंड के अनुसार सूर्य देव शनि के पिता है ∣
आज हम जानेगें क्या है? इसके पीछे की कहानी
शनि देव का जन्म सूर्य देव और संवर्णा के मिलन से हुआ था ∣
पौराणिक कथा के मुताबिक सूर्य देव का विवाह राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ था। जो हमेशा सूर्य देव के तप से परेशान रहती थी वो हमेशा यही विचार करती थी ∣
कि सूर्य देव का तप कैसे कम किया जाए समय बीतने के साथ संज्ञा के गर्भ से यमराज, यमुना और वैवस्वत ने जन्म लिया। किन्तु तब भी संज्ञा सूर्य देव के तप से परेशान रहती थी
कुछ समय के उपरांत संज्ञा ने सूर्य देव के तप को कम करने के लिए तपस्या करने का फैसला किया किन्तु
संज्ञा का बच्चों को छोड़कर जाना संभव न था ।
इसके लिए संज्ञा ने एक युक्ति सोची जिससे सूर्य देव को मालूम भी न चले और उनकी तपस्या भी हो जाएं ।
इसके लिए उन्होंने
अपने तप से छाया नाम की संवर्णा को पैदा किया। सूर्यदेव और अपने बच्चों की जिम्मेदारी संवर्णा को देकर वो अपने पिता के घर चली गईं ।
जब संज्ञा ने अपनी परेशानी अपने पिता को बताई तो वो बहुत गुस्सा हुए और संज्ञा को डांटकर वापस भेज दिया। किन्तु अपने पति के घर वापस न आकर वो जंगल में चली गई। जंगल में जाकर घोड़ी का रूप धारण कर लिया और तपस्या करने लगी। इन सब बातों का सूर्य देव को आभास भी नहीं हुआ। सूर्य देव के साथ रहने वाली संवर्णा का छाया रूप होने के कारण सूर्यदेव के तप से उसे कोई परेशानी नहीं हुई और कुछ समय बाद संवर्णा और सूर्यदेव के मिलन से शनिदेव, मनु और भद्रा नाम की तीन संतानों ने जन्म लिया। इस तरह शनि देव का जन्म हुआ।