शनि प्रदोषम 2020
- फोटो : Myjyotish
प्रदोषम वह शुभ तिथि है जो सूर्यास्त से 1.5 घंटा पहले व बाद में मिलाकर 3 घंटे का समय बनती है। यह प्रत्येक माह के 13 वें दिन द्वि-मासिक के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान शिव और नंदी की पूजा के लिए आदर्श माना जाता है। जब एक प्रदोषम शनिवार को पड़ता है, तो इसे शनि प्रदोषम कहा जाता है। भगवान शनि, कर्म का ग्रह माने जाते है। शनिवार के दिन विभिन्न नियमों का पालन करते हैं, और शनि देव की पूजा करते हैं। सभी भक्तगण शनि प्रदोषम पर भगवान शिव को अपनी पूजा अर्पित करते हैं, यह माना जाता है कि आपके पाप और कर्म के आधार पर शनि अपना आशीर्वाद प्रदान करते है।
आमतौर पर लोग प्रदोषम के दिन खाने-पीने से परहेज करते हैं। शाम को शनि और भगवान शिव की पूजा संपन्न करने के पश्चात व्रत तोड़ा जाता है। पूजा करने का आदर्श समय प्रदोषम समय है यानि की सूर्यास्त से 1.5 घंटे पहले और सूर्यास्त के 1.5 घंटे बाद है। विशिष्ट परिस्थितियों में लोग दूध और फलों के सेवन के साथ भी उपवास करते है।
शनि त्रियोदशी पर शनि शिंगणापुर मंदिर में कराएं तेल अभिषेक : 12 दिसंबर 2020
भगवान शिव शनि या शनि ग्रह के देवता हैं। शिव परिवर्तन और विनाश के प्रमुख हैं, जबकि शनि न्याय के भगवान हैं। शनिदेव झूठे तरीकों से प्राप्त व्यक्ति की प्रसिद्धि, साख को नष्ट कर देते है। वह व्यक्ति के भीतर ईमानदारी और विश्वास का भाव उत्पन्न करते है जो उसे एक बेहतर इंसान बनाता है। सच्चा एवं अच्छा मार्ग व्यक्ति को शिव एवं शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायक होता है।
सभी शनि मंदिरों में इस दिन विशेष पूजा - अर्चना की जाती हैं। कहा जाता है की इस दिन यदि सरसों के तेल से शनि देव का अभिषेक करें तो व्यक्ति के समस्त कष्ट समाप्त हो जातें है। शनिदेव कर्म फलदाता है जो कोई भी सच्चे मन से उनकी आराधना करता है उसकी इच्छाएं आवश्य ही पूर्ण होती है। सूर्यास्त के समय यानी की शाम की पूजा के बाद भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है, जिसे व्रत (उपवास) तोड़ने के लिए खाया जाता है।
यह भी पढ़े :-
पूजन में क्यों बनाया जाता है स्वास्तिष्क ? जानें चमत्कारी कारण
यदि कुंडली में हो चंद्रमा कमजोर, तो कैसे होते है परिणाम ?
संतान प्राप्ति हेतु जरूर करें यह प्रभावी उपाय