शनि जयंती के शुभ अवसर पर कोकिलावन शनि धाम में चढ़ाएं 11 किलों तेल और पाएं अष्टम शनि ,शनि की ढैय्या एवं साढ़े - साती के प्रकोप से छुटकारा : 22-मई-2020
असंख्य पौराणिक कथाओं में से यह कथा उस पड़ाव की है जब एक साथी के रूप में शनि उचित रूप से प्रख्यात नहीं हो पाएं थे। शनि देव के विवाह को बहुत वर्ष हो चुके थे। और इन वर्षों में पूर्ण निष्ठा एवं निस्वार्थ भाव से शनि देव की पत्नी ने उनकी सेवा की थी। उन्होंने कभी किसी चीज़ की उम्मीद नहीं की , और केवल अपने धर्म का पालन करती रही। शनि वास्तव में उनसे विवाह नहीं करना चाहतें थे। परन्तु अपने पिता सूर्य देव की आज्ञा का अनादर न करने के लिए उन्होंने यह विवाह संपन्न किया। विवाह तो हो गया पर उनकी अर्धांगिनी होने का सौभाग्य उनकी पत्नी को कभी नसीब नहीं हुआ था। विवाह के इतने समय बाद भी उन्हें एक बालक की कमी सदैव कचोटती रहती थी।
शनि जयंती के पावन अवसर पर कोकिलावन शनि धाम में कराएं तेल अभिषेक
इसी अधूरेपन और मातृत्व का सुख भोगने हेतु उनकी पत्नी ने उनके समक्ष एक पुत्र माता होने की इच्छा व्यक्त की। यह सुनकर शनि बहुत क्रोधित हो उठे और उन्हें अपनी पत्नी का स्थान देने से भी इंकार कर दिया। यह वाक्य शनि देव की पत्नी बर्दाश न कर सकी और उनका सब्र टूट गया। वह क्रोध में आकर हाथ में जल लेकर शनि देव को श्रापित करती है। वह शनि को श्राप देती है की उनकी दृष्टि वक्री हो जाएगी ,जिसके कारण वह किसी से नजरे नहीं मिला पाएंगे एवं जो कोई भी उनकी आँखों में देखने का प्रयास करेगा वह नेत्रहीन हो जाएगा। तभी से शनि देव के समक्ष खड़े होकर एवं उनकी आँखों से आँखे मिलकर पूजा नहीं की जाती है। शनि की इस कुदृष्टि का बचाव केवल उनके ऊपर सरसों के तेल से अभिषेक करने के कारण ही संभव होता है।
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