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क्या है इससे जुड़ी धार्मिक मान्यता
इसके रचयिता महाराजा दशरथ थे उनकी आराधना से भगवान शनि प्रसन्न हुए उन्होंने कहा वरदान मांगो तब दशरथ जी ने कहा आप अपने प्रकोप से इस समाज को मुक्त कर दो, पशु पक्षी आदि को अपने हानिकारक प्रभाव से मुक्ति दें ये सुनकर एवं दशरथ जी का कल्याण भाव देखकर शनिदेव प्रसन्न हुए और ये आशीर्वाद दिया कि जो इस शनि स्तोत्र का पाठ करेगा अवश्य ही उस पर मेरा प्रकोप निष्क्रिय हो जाएगा। शनिदेव राशि के किसी भी भाव पर विराजमान हो सकते हैं एवं व्यक्ति के जीवन की दिशा को बदल सकते हैं।
क्या है दशरथकृत शनिस्तोत्र पाठ की सही विधि
शनिवार सुबह उठकर स्नान कर लें एवं साफ कपड़े पहने उसके पश्चात चौकी को साफकर काले रंग का कपड़ा बिछा लें और उस पर शनिदेव की मूर्ति अथवा चित्र स्थापित करें। एक काले रंग का आसन लें उस पर बैठकर तेल का दीपक एवं अगरबत्ती जलाएं फिर शानिस्तोत्र का पाठ करें। सहृदय पाठ करने के पश्चात शनिदेव से जुड़े मंत्रों का जाप करें फिर शनिदेव को काले रंग के पेय पदार्थ, मिठाई का भोग अवश्य लगाएं। शनिदेव से प्रार्थना करें जीवन में शनि की साढ़े साती से उत्पन्न विघ्नों को हर लें एवं जीवन में खुशहाली भर दें। इस पाठ के बाद काले रंग के वस्त्र एवं ढाई किलो उड़द दाल का दान करें।
क्या है शनिस्तोत्र का अर्थ
मैं शिव के समान रंग वाले शनिदेव को प्रणाम करता हूं। कालाग्नि रूप के शनिदेव को प्रणाम करता हूं। जिनका शरीर कंकालरूपी एवं दाढ़ी, मूंछ, सिर के बाल लंबे हैं ऐसे शनिदेव महाराज को मैं प्रणाम करता हूं। जिनकी बड़ी आंखे हैं रौद्र रूप है ऐसे मेरे शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूं। लंबे चौड़े कद काठी वाले, विकराल रूप वाले शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूं। सूर्यदेव के पुत्र जो भयरहित हैं उन्हें मैं प्रणाम करता हूं। तलवार समान तीव्र दृष्टि वाले शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूं। आप जैसे घोर तपस्वी देव को मैं प्रणाम करता हूं। आपके नेत्रों में ज्ञान का भंडार है ऐसे मेरे शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूं। प्रसन्न होकर सुख देने वाले क्रोध में दंड देने वाले शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूं। देव, असुर, नाग, सिद्ध पर दृष्टि से सब खत्म हो जाते हैं ऐसे शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूं।
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