धार्मिक महत्व-
इस मंदिर में देवी भद्रकाली अपने उग्र रूप में प्रतिनिधित्व करती हैं। मंदिर में स्थापित प्रतिमा उत्तर की ओर मुख करती हैं, जिसमें विभिन्न विशेषताओं के साथ आठ हाथ हैं। एक राक्षस राजा दारुका का सिर पकड़े हुए है, दूसरा हंसिया के आकार की तलवार, बगल में एक पायल, दूसरा घंटी, दूसरों के बीच में। कहते हैं दारुका राक्षस जब परशुराम जी को परेशान कर रहा था, तो भगवान शिव ने उनसे भगवती शक्ति देवी के मंदिर की स्थापना करने को कहा। उन्होने देवी और शिव प्रतिमा और स्थापित कर दिया। फिर माँ भगवती ने उग्र भद्रकाली के रूप में दानव दारुका को मार डाला और परशुराम और उनके लोगों को बचाया।
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किए गए पाँच श्री चक्र , माता की शक्तियों का मुख्य स्रोत माना जाता है। इस मंदिर का एक आकर्षक पहलू यह है कि यह माना जाता है कि पूजा या अनुष्ठान स्वयं देवी के निर्देशों के तहत किया जाता है
मनाया जाता है यहां खास भरणी त्योहार-
कोडुंगल्लूर मंदिर में आयोजित होने वाला भरणी त्योहार केरल के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार मीनम माह यानि मार्च और अप्रेल के महिने में 7 दिन के लिए मनाया जाता हैं। यह त्योहार ‘कोझिकलकु मूडल’ नामक एक अनुष्ठान से शुरु होता है। जिसे मंदिर की और त्योहार की खास विशेषता बताते हैं। जिसमें मुर्गों की बलि और उनके रक्त का बहाव शामिल होता है। इस धार्मिक रिवाज़ और रक्त प्रसाद से देवी काली प्रसन्न होती हैं।
मंदिर को प्रदूषित करने की है यहां अनोखी प्रथा-
भारी मात्रा में लोग इस अद्भुत उत्सव में भाग लेने के लिए इकट्ठा होते हैं जिसमें वे मंदिर को प्रदूषित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भरणी उत्सव के दौरान मंदिर की तीर्थयात्रा तीर्थयात्रियों को हैजा और चेचक के गंभीर हमलों से बचाएगी।
अलग है यह बात-
भारत में जाति को लेकर आज तक बहुत रुडीवादी सोच हैं। जहां लोगों में जाति धर्म के आधार पर भेद भाव आम हैं। एसे में कोडुंगल्लूर भगवती मंदिर केरल के उन पहले मंदिरों में से एक के रूप में महत्वपूर्ण है, जिसने जाति पदानुक्रम के निचले तबके से संबंधित भक्तों को मंदिर परिसर में प्रवेश की अनुमति दी, जबकि अन्य मंदिरों ने वर्षो तक उनके प्रवेश पर रोक लगाए रखी थी।