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Home ›   Blogs Hindi ›   Sawan Somvar Vrat Katha Vidhi - Puja Vidhi, Samagri Significance Online Hindi

जानें सावन सोमवार व्रत की कथा पूजा विधि, सामग्री एवं महत्व

Myjyotish expert Updated 30 Jul 2021 02:22 PM IST
सावन सोमवार व्रत कथा विधि
सावन सोमवार व्रत कथा विधि - फोटो : Google
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Sawan Somvar Vrat Katha Puja Vidhi - महादेव का प्रिय महीना सावन जल्द ही आरम्भ होने को है। भगवान शिव(shiv) का दिन माने जाने वाले सोमवार का सावन मास में काफ़ी महत्व होता है। सावन के सोमवार का व्रत करने से महादेव प्रसन्न हो कर अपने भक्तों के कष्ट दूर करते हैं। आइए जानते हैं सावन के सोमवार से जुड़ी व्रत कथा, पूजा में लगने वाली सामग्री और पूजन विधि के बारे में।

श्रावण के दौरान सूर्य अपनी ही राशि सिंह राशि में है। वैसे तो पूर्ण श्रावण मास बहुत ही शुभ होता है, लेकिन श्रावण सोमवार (monday) किसी भी अन्य दिन की तुलना में अधिक महत्व रखता है क्योंकि इसे भगवान शिव का दिन माना जाता है। इस वर्ष माह में चार श्रावण सोमवार हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस महीने में पूरे मन से भगवान शिव की पूजा करने से लोगों को सुख, सफलता और समृद्धि मिलती है।

सावन के महीने में पड़ने वाले सभी सोमवार (monday) को श्रावण सोमवार या सावन सोमवार व्रत कहा जाता है। कई भक्त सावन महीने के पहले सोमवार से सोलह सोमवार या सोलह सोमवार उपवास रखते हैं और अगले पंद्रह सप्ताह तक जारी रहते हैं।

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सावन सोमवार व्रत की कथा पूजा विधि (Sawan Somvar Vrat Katha Vidhi Hindi):

एक बार की बात है किसी नगर में एक साहूकार (moneylender) रहता था। जिसके घर में धन की तो कभी कमी नहीं हुई। लेकिन संतान सुख से वह वंचित था। और इसके कारण वह निरंतर परेशान भी रहता था। संतान प्राप्ति का फल प्राप्त करने के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत धारण करता था। पूरी भक्ति के साथ इस दिन शिव मंदिर(shiva temple) जाया करता था। एवं भोलेनाथ और माता पार्वती की पूरी श्रद्धा (shraddha) से पूजा करता था। इसकी भक्ति से माता गौरी प्रसन्न होकर साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने के लिए शिव जी के पास अर्जी लगाई। पार्वती जी की आग्रह से भोलेनाथ ने कहा कि -" हे पार्वती इस जगत में हर व्यक्ति को उसके कर्म के आधार पर फल की प्राप्ति होती है। तथा जिसकी किस्मत में जो लिखा है उसे सहना पड़ता है।" इसके बाद भी माता पार्वती ने साहूकार की भक्ति को स्वीकारते हुए उसकी इच्छा पूर्ण करने के लिए फिर से उनसे कहा। ऐसा करने से शिव जी साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दे दिए। परंतु साथ में यह भी कहा कि उस बालक की आयु सिर्फ 12 साल तक हीं होगी। भगवान शिव और माता गौरी के संपूर्ण वार्तालाप साहूकार सुन रहा था। जिसे सुनने के बाद ना तो वह खुश हुआ और ना हीं दुखी। अतः वह जैसे शिव की आराधना करता था, उसी प्रकार बस करता रहा। 

कुछ दिनों बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। और जब उस बालक का उम्र 11 साल हुआ, तो उसे अध्ययन के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने अपने पुत्र के मामा को बुलाया और उसे ढेर सारा धन देकर कहा - तुम इसे शिक्षा (shiksha) प्राप्ति  के लिए काशी विद्या पीठ (kashi vidya pith)  ले जाओ और रास्ते में यज्ञ कराते हुए जाना। इसके साथ हीं यह भी ध्यान रखना कि जहां भी यज्ञ कराओगे वहां ब्राह्मण भोज कराकर दक्षिणा जरूर देना। इसी शर्तों के साथ दोनों मामा-भांजे काशी की तरफ निकल पड़े। उसी मार्ग में एक नगर पड़ा जहां किसी राजकुमारी का विवाह था। परंतु जिस राजकुमार से उसका विवाह होने जा रहा था, वह एक आंख से अंधा था। जिसके बारे में  राजकुमारी और उसके परिवार वाले नहीं जान रहे थे। क्योंकि राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाए रखा था। और बात छिपाने के लिए कोई चाल सोच रहा था। साहूकार के पुत्र पर जब राजा की नजर पड़ी तो उसके मन में ख्याल आया कि क्यों ना इसे ही राजकुमार बनाकर यानी दूल्हा (groom) बना कर राजकुमारी से विवाह करा दिया जाए। उसके बाद इसे खूब सारा धन देकर भेज दूंगा। और राजकुमारी को अपने घर रख लूंगा। इस प्रकार उसने अपनी चाल के अनुसार उस बालक को दूल्हे की तरह सजा कर राजकुमारी के साथ विवाह करा दिया। आपको बता दें कि साहूकार का बेटा अत्यंत ईमानदार (honest) था। मौका हाथ लगते हीं इसने राजकुमारी के चुन्नी पर लिख दिया- "तुम्हारा विवाह जिस राजकुमार से होने जा रहा था वह एक आंख से काना था। और मैं तो काशी पढ़ने के लिए जा रहा था। बीच रास्ते में जबरदस्ती मुझे विवाह (vivah) में बिठा दिया गया।" इस तरह राजकुमारी (rajkumari) ने चुन्नी पर लिखी पूरी बात को अपने माता-पिता के सामने रखा। तो राजा ने अपनी पुत्री को विदा ना करने का फैसला लिया।  

एक ओर साहूकार का पुत्र और उसका मामा काशी पहुंचकर यज्ञ का आयोजन किया। जिस दिन साहूकार के बालक की आयु 12 वर्ष की हुई। यज्ञ उसी दिन आयोजित किया गया था। हालांकि लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही। मामा ने तुरंत उसे कहा तुम अंदर जाओ और सो जाओ। शिव जी की वरदान और शर्त के अनुसार कुछ ही देर के बाद उस बालक ने अपनी प्राण त्याग दी। भांजे को मृत देखकर मामा की विलाप शुरू हो गई। संयोग ऐसा था कि उसी क्षण माता पार्वती और भगवान शिव उधर से गुजर रहे थे। माता पार्वती ने भगवान से आग्रह किया- " हे स्वामी! मुझे इस प्राणी के रोने की स्वर सहन नहीं हो पा रहा। कृपया आप इसके कष्टों का निवारण करें। माता पार्वती के आग्रह (request) के बाद जब शिवजी( shiv ji) उस मृत बालक के निकट गए और देखकर बोले यह तो उसी साहूकार का पुत्र (son) है। 

जिसे मैंने कुछ समय पहले 12 साल की आयु का वरदान दिया था। अब तो इसने 12 वर्ष की जिंदगी जी ली है।वरदान के अनुसार आयु पूरी हो चुकी है। परंतु मातृ भाव से युक्त मां गौरी ने कहा- "हे महादेव! कृपा कर आप इस बच्चे को की आयु (age) और बढ़ा दे अन्यथा इसे खो देने की दुख में इसके माता-पिता (parents) भी तड़प कर मर जाएंगे। पार्वती के इस अर्जी पर महादेव ने उस बालक को पुनः जीवित होने का वरदान दे दिया। और फिर अपनी शिक्षा (education) पूरी करके बालक अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर निकल पड़ा।  वापस लौटते समय मामा-भांजे उस नगर में पहुंचे जहां उस बालक का किसी राजकुमारी से विवाह हुआ था। और इस दौरान राजकुमारी के पिता ने उसे देखकर पहचान लिया और उस बालक की महल में खूब खातिरदारी और स्वागत किया और राजकुमारी को उसके साथ विदा कर दिया। 

इधर साहूकार और उसकी पत्नी कब से भूखे-प्यासे रहकर अपने बेटे की राह देख रहे थे। दोनों ने प्रण (oath) लिया था कि अगर वह अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनेंगे तो अपने शरीर का त्याग देंगे। लेकिन बेटे को जीवित रहने की समाचार सुनते हीं वह बेहद खुश हो गए। और उसी रात्रि को भोलेनाथ ने साहूकार के सपने में आकर कहा था कि- " मैं तुम्हारे द्वारा सोमवार व्रत की पूजन और व्रत कथा सुनने से प्रफुल्लित होकर तुम्हारे बेटे को लंबी उम्र का वरदान दे रहा हूं। 

इसी प्रकार सोमवार का व्रत (Somwar vrat) जो कोई भी धारण करता है। या इसकी कथा सुनता है, तो व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। साथ हीं उसके कष्टों का निवारण भी हो जाता है। 

 

सावन सोमवार पूजा पूजा विधि (Sawan Somvar Katha Puja Vidhi):

इस दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ वस्त्र धारण करें।

इसके बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।

सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।

शिवलिंग पर गंगा जल और दूध चढ़ाएं।

भगवान शिव को पुष्प, बेल पत्र, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृ्त, मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, भांग, आक-धतूरा, कमल, गट्ठा, प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा अर्पित करें।

भगवान शिव की आरती करें और भोग भी लगाएं। भोग लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। 

भगवान शिव का अधिक से अधिक ध्यान करें, व्रत कथा सुने व मंत्रों का जाप करें।

 

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सावन सोमवार व्रत पूजा सामग्री:


सावन के सोमवार का व्रत करते समय जल, दुध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृ्त, मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बेल-पत्र, भांग, आक-धतूरा, कमल, गट्ठा, प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा, दक्षिणा भगवान शिव को अर्पित किया जाता है। इस दिन धूप-दीपक जलाकर कपूर से महादेव की आरती उतारें और शिव जी के मंत्रो का जाप करें साथ ही व्रत कथा का रशपान करें।

 

ये व्रत कथा भी पढ़े -

Somvar Vrat Katha in Hindi  Mangalvar Vrat Katha in Hindi 
Budhwar Vrat Katha in Hindi  Brihaspativar Vrat Katha in Hindi 
Shukravar Vrat Katha in Hindi  Shanivar Vrat Katha in Hindi 
Ravivar Vrat Katha in Hindi सोमवार व्रत उद्यापन विधि
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