सीख-
गुरुकुल काल ( Gurukul time ) में इस दिन का काफी महत्व था। यह दिन अध्यं और अध्यापं को शुरू करने के लिए प्रसिद्ध था। मनुष्मति मुताबिक , इस दिन गुरुजन वेदो की शाखाओ को दोहराते हैं। इसलिए इस दिन को श्रावणी भी कहा जाता है। शैक्षणिक सत्र ( session ) का आरंभ श्रावणी वाले दिन ही होता था। आपको बताते चलें वे कर्म जो वेदों के अध्ययन काल में शुरू होते हैं , उन्हें उपकर्म कहा जाता है।
श्रावणी पूर्णिमा को शर्पबलि-
महाभारत ( Mahabharata ) में नागों के बारे में बहुत जगह अलग-अलग प्रकार से विश्लेषण किया गया है । जब अर्जुन (Arjuna ) 12 वर्ष के थे और उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया था , तब वे नागों के देश में गए थे और उनको उलपू नामक सुकुमारी से विवाह किया। गए तो वह एक अश्वमेध को बचाने के लिए थे, लेकिन आकर्षण के कारण उनका विवाह हो गया । फिर अर्जुन ने मणिपुर चित्रागंदा के बेटे बभ्रूबाहं से युद्ध करने का निश्चय किया, लेकिन दुर्भाग्यवश वे मारे गए ।
सर्प शिव और विष्णु दोनों से ही संबंधित है । जैसे की हम को ज्ञात है शिव नागों को गले में हमेशा रखते हैं और वही विष्णु जी भी शेषनाग पर आराम करते हैं। सर्प और नाग शब्द का इस्तेमाल कई बार लोग एक जगह पर ही कर लेते हैं , लेकिन इन दोनों का मतलब अलग अलग है। सर्प उन सभी रेंगने वाले जीव को कहते हैं और नाग फन वाले सांप को। भगवत गीता ( Bhagwat Geeta ) में बताया गया है कृष्ण जी (Lord krishna ) ने स्वयं को नागों का अनंत और सरपो में वासुकी नाम दिया था। बारिश के मौसम में अक्सर शाप ज्यादा निकला करते हैं। सांप की पूजा भी एक प्रकार से सांप भय ( snake's fear ) की वजह से ही की जाती है । शर्पो की प्रतिमाएं पीपल ( Peepal tree ) जैसे पवित्र पेड़ों के नीचे आसानी से देखने को मिल जाते हैं। पुराणों में अनेक नागो के विषय में कथाएं सुनने को मिलती है व बहुत सारे मंदिरों में नाग देवता की विधि-विधान पूजा भी होती रहती है।
संस्कृत दिवस श्रावणी पूर्णिमा से आधारित-
वैदिक और पौराणिक परंपराओं से पता चलता है कि संस्कृत दिवस (Sanskrit Day) रक्षाबंधन के दिन मनाने का विशेष महत्व है । भारत के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और शिक्षा मंत्री जी राव ने 1969 में इसको मनाने का ऐलान किया था। संस्कृत दिवस हमारी संस्कृत भाषा के प्रति सम्मान ( respect )देने का एक तरीका है । संस्कृत पौराणिक काल की भाषा है , यह आदर्श और अनुशासन का मिश्रण है । साथ ही यह व्यक्ति को नैतिकता पर मजबूत बनाता है । यह एक जरिया भी है उनको समझाने का जिससे वह अपनी ऐतिहासिक भाषा को ना भूले और अपने ज्ञान विज्ञान ,साहित्य जैसे क्षेत्रों में संस्कृत भाषा Sanskrit language का इस्तेमाल भी करें।
रक्षाबंधन का प्रतीक-
श्रावण की पूर्णिमा को रक्षाबंधन (Rakshabandhan festival ) पर्व बड़े उल्लास से मनाया जाता है। इस दिन जल्दी उठकर देवी देवताओं को स्मरण करके, पितरों को जल अर्पित करते हैं ,साथ ही अक्षत, तिल व धागा चढ़ाना चाहिए। इस दिन बहने बड़े प्यार से अपने भाइयों की रक्षा की प्रार्थना करके उन्हे राखी व मौली बांधती है। और इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
येन बद्धो बली राजा दानवेंद्रो महाबल:
तें तआम्भिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
मैं आपको यह रक्षा सूत्र बांध रही हूँ जो राजा बलि को देवताओं की शक्ति स्वरूप बांधा गया था। हे रक्षा सूत्र तुम अपनी जगह से मत हटना और मेरे भाई को मुश्किलों से निकालने मे अपनी भूमिका निभाना। यह त्योहार गुजरात का था तभी जैसे क्षेत्रों में मुख्य रूप से मनाया जाता है।
ये भी देखें:
जानिए शुक्र के प्रभाव से वृषभ राशि को कैसे होगी आय में बढ़ोत्तरी
हस्तरेखा ज्योतिषी से जानिए क्या कहती हैं आपके हाथ की रेखाएँ
आपके स्वभाव से लेकर भविष्य तक का हाल बताएगी आपकी जन्म कुंडली, देखिए यहाँ