सावन का महीना निकट है और यह पूरा महीना भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित है। इस पूरे महीने भगवान शिव के विभिन्न मंदिरों पर रुद्राभिषेक किया जाता है। श्रद्धालू शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। इस पूरे महीने भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगो पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है। लेकिन क्या आप इन बारह ज्योतिर्लिंगो से जुड़ी पौराणिक कथा जानते हैं। आज हम आपको बताएंगे इन ज्योतिर्लिंगों से जुड़ी सारी पौराणिक बातें-
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सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग, गुजरात राज्य के कठियावाड़ क्षेत्र में स्थित है। यही वह स्थान हैं जहां पर भगवान श्री कृष्ण को ब्याध ने तीर मारा था। एक बार दक्ष प्रजापति के द्वारा चंद्रदेव को क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप मिला। जिसके निवारण के लिए ब्रह्मा जी ने चंद्रदेव को भगवान शिव की उपासना करने को कहा। तब चंद्रदेव ने इसी स्थान पर भगवान शिव की पूजा की। चंद्रदेव की उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान प्रदान किया। इसके बाद चंद्रदेव ने इस स्थान पर भगवान शिव को माता पार्वती के सात विराजमान होने की विनती की।
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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। एक बार भगवान शिव के दोनों पुत्रों गणेश व कार्तिकेज जी में पृथ्वी का चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा हुई। जिसमें गणेश जी अपने माता पिता की परिक्रमा लगाकर विजयी हुए थे। इसके बाद कार्तिकेय जी क्रोधित होकर क्रोञ्च पर्वत पर चले गए। तत्पश्चात माता पार्वती उन्हें मनाने गईं व भगवान शिव उस पर्वत पर शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए।
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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी में स्थित है। इससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन श्रीकर नामक एक पांच वर्ष का बालक एक छोटे से पत्थर को भगवान शिव मानकर पूजा कर रहा था। वह बालक पूजा से उठने को तैयार नहीं था। क्रोधित होकर उस बालक की मां ने वह पत्थर उठाकर फेंक दिया। जिसके बाद वह बालक आंख बंद कर विलाप करने लगा। उसके आंखे खोलने पर रत्नाभूषण युक्त एक विशालकाय ज्योतिर्लिंग वहां पर स्थापित था।
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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में शिवपुरी में स्थित है। इन स्थान पर नर्मदा की दो धाराएं कट जाने से बीच में टापू जैसा स्थान बन गया है। जिसे शिवपुरी कहा जाता है। इस टापू को मन्धाता भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि महाराज मन्धाता ने भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था। इसी से इस पर्वत को मान्धाता पर्वत कहा जाता है। इस पूरे पर्वत को ही भगवान शिव का रूप माना जाता है।
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केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग, हिमालय पर्वत की केदार नामक चोटी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि महातपस्वी श्रीनर और नारायण ने हजार वर्षों तक निराहार रहकर एक पैर पर भगवान शिव के नाम का जप करते रहे। उनके इस कठिन तप की चर्चा सभी लोकों में होने लगी। अंत में भगवान शिव ने प्रसन्न होकर इन दोनों ऋषियों को दर्शन दिए।
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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग पुणे से 100 किलोमीटर की दूरी पर सह्याद्री पर्वत पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि कुम्भकरण के पुत्र राक्षस भीम ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिए ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया। जिसके बाद वह देवताओं, ऋषियों, मुनियों आदि सभी को परेशान करने लगा। तब सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे इस राक्षस के वध की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने सभी देवताओं को भीम के वध का आश्वासन दिया। तत्पश्चात भगवान शिव के एक अनन्य भक्त राजा सुदक्षिण को भीम ने बंदी बना रखा था। भीम के कारागृह में राजा सुदक्षिण अपने शिवलिंग की पूजा कर रहे थे। क्रोधित होकर भीम ने अपनी तलवार से उस शिवलिंग पर प्रहार किया। तलवार द्वारा शिवलिंग के स्पर्श से पहले ही भगवान शिव ने प्रकट होकर भीम का संहार कर दिया तथा उसके बाद से वो वहीं पर विराजमान हैं।
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काशी विश्विनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग उत्तर भारत की प्रसिद्ध नगरी वाराणसी में स्थित है। प्रलय के समय भी इस नगरी का लोप नहीं होता। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यह नगरी अपने त्रिशूल पर धारण कर रखी है। काशी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। इससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने विवाह के बाद भगवान शिव से उन्हें अपने घर ले जाने को कहा। जिसके बाद वो माता पार्वती को लेकर काशी आए और काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए।
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त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक से 30 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। एक बार महर्षि गौतम पर गौहत्या का आरोप लगा। जिससे मुक्ति पाने के लिए महर्षि गौतम ने भगवान शिव की तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया व मनचाहा वरदान मांगने की बात कही। जिसपर महर्षि गौतम ने स्वयं को गोहत्या के पाप से मुक्त होने का वरदान मांगा। भगवान शिव ने तब उन्हें बताया कि आप पर गोहत्या का पाप नहीं है। बल्कि यह आरोप छलपूर्वक आपके ही आश्रम के ब्राह्मणों द्वारा लगाया गया है। मैं आपके आश्रम के ब्राह्मणों को दण्ड देना चाहता हूं। जिसपर महर्षि गौतम ने उन्हें ऐसा न करने की विनती की, व ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां पर विराजमान होने का आग्रह किया।
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वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग बिहार राज्य में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि रावण ने भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया व वरदान स्वरूप उन्हें लंका ले जाने की विनती की। इस पर भगवान शिव ने रावण की बात तो मान ली मगर एक शर्त के साथ की वह इस ज्योतिर्लिंग को अपने साथ ले जा सकता है लेकिन रास्ते में कहीं रख नहीं सकता। रखते ही यह ज्योतिर्लिंग वहीं पर स्थापित हो जाएगा। रास्ते में रावण लघुशंका से निवृत्त होने के लिए एक अहीर के हाथ में शिवलिंग देकर चला गया। उस अहीर ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और यह वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में यहीं पर स्थापित हो गया।
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग द्वारिका पुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के अनन्य भक्त सुप्रिय को दारुक नाम के एक राक्षस ने बंदी बना लिया था। लेकिन कारागार में भी सुप्रिय लगाता भगवान शिव की पूजा करते रहे। जिससे क्रोधित होकर दारुक ने सुप्रिय को मार डालने का आदेश दिया। तब वहां पर भगवान ज्योतिर्लिंग के रूप में अवतरित हुए व सुप्रिय को पाशुपत अस्त्र प्रदान किया। जिससे सुप्रिय का वध हुआ। इसके बाद भगवान शिव के साथ सुप्रिय शिवधाम चला गया।
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रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि लंका पर चढ़ाई करने जाते समय भगवान श्रीराम ने समुद्र तट पर बालू का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा की तथा उनसे विजय का वर मांगा। भगवान शिव ने श्रीराम को जीत का आशीर्वाद प्रदान किया व लोक कल्याणर्थ यहां पर विराजमान होने की विनती भी स्वीकार कर ली। तभी से भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां पर विराजमान हैं।
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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
द्वादश ज्योतिर्लिंगो में अंतिम ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर महाराष्ट्र के दौलताबाद के समीप स्थित है। इससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार एक ब्राह्मण दम्पत्ति थे सुधर्मा व सुदेहा। दोनों आपस में अत्यंत प्रेम से रहते थे लेकिन सुदेहा को कोई संतान नहीं थी। ऐसे में सुदेहा ने अपनी बहन घुश्मा से अपने पति का विवाह कराने की जिद करने लगी। घुश्मा शिव की अनन्य भक्त थी। वह रोज एक सौ शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती थीं। विवाह के पश्चात घुश्मा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। दोनों बहनें अत्यंत प्रसन्न हुई। धीरे-धीरे वह पुत्र जवान भी हो गया व उसका विवाह भी हो गया। लेकिन सुदेहा के मन में एक कुविचार ने जन्म ले लिया। एक रात सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र का वध कर दिया व उसके शरीर को उसी तालाब में फेंक दिया जहां पर घुश्मा शिवलिंग विसर्जित करती थी। अगले दिन पूरे घर में कोलाहल मचा हुआ था। सुदेहा व उसकी पुत्रवधू विलाप कर रहे थे परन्तु घुश्मा और दिनों की भांति शिवलिंग की पूजा करके उन्हें विसर्जित करने तालाब के पास पहुंची। उस तालाब से घुश्मा का पुत्र जीवित बाहर आ गया। जिसके बाग भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए व सदा वहां पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान होने की विनती भी स्वीकारी।
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