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Sankranti : ओडिशा की ये संक्रांति होती है बहुत खास जानें क्यों कहलाती है ये राजा संक्रांति

MyJyotish Expert Updated 15 Jun 2023 09:45 AM IST
Sankranti : ओडिशा की ये संक्रांति होती है बहुत खास जानें क्यों कहलाती है ये राजा संक्रांति
Sankranti : ओडिशा की ये संक्रांति होती है बहुत खास जानें क्यों कहलाती है ये राजा संक्रांति - फोटो : google
सूर्य के राशि संक्रमण को संक्रांति कहते हैं. सौर मास अनुसार आने वाली संक्रांति को कोई न कोई नाम से जाना जाता है. ओडिशा में मनाई जाने वाली आषाढ़ मास की संक्रांति बेहद ही विशेष होती है इसे राजा संक्रांति के नाम से जानते हैं. इस समय सूर्य के वृष राशि को छोड़कर मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं, देश भर में सौर संक्रांति का पर्व कई रूपों में मनाया जाता है. आइए जानते हैं ओडिशा संक्रांति के नाम और इसकी विशेषताओं के बारे में  

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रज संक्रांति समय
यह संक्रांति 15 जून 2023 दिन गुरुवार के दिन मनाई जाएगी. संक्रांति का समय शाम 18 बजकर 16 मिनट तक रहेगा, इस समय सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करेगा. संक्रांति पुण्य काल शाम 18 बजकर 16 मिनट से 19 बजकर 20 मिनट तक रहेगा,संक्रांति महा पुण्य काल 18:29 से 19:20 तक रहेगा. इसके अलावा स्नान दान से संबंधित कार्य इस दिन किए जा सकेंगे. 
 
संक्रांति से जुड़ी लोक धार्मिक मान्यताएं
ज्योतिष शास्त्र  के अनुसार जब सूर्य हर महीने एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो यह संक्रमण काल होता है, इसलिए इसे संक्रांति कहते हैं. संक्रमण काल के कारण इस समय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, इस समय प्रकृति में मौसम में परिवर्तन होने का समय होता है, इसलिए इस समय कुछ कार्य करना आवश्यक माना जाता है, विशेष रूप से स्नान का कार्य, को करना अधिक अनुकूल माना जाता है. इसे धार्मिक में शरीर की शुद्धि एवं मानसिक चेतना की मजबूत के रुप में प्राप्त किया जाता है. रज संक्रांति के दिन स्नान, दान और अन्य धार्मिक कार्यों को करने से जीवन में शुभता बनी रहती है. इस समय पर पितरों के लिए तर्पण से संबंधित कार्य भी किए जाते हैं. 
 
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और कुछ जगहों पर इस समय को राजा या राजा संक्रांति के रूप में मनाया जाता है. मान्यताओं के अनुसार इस समय पृथ्वी रजस्वला हो जाती है. धर्म शास्त्रों में पृथ्वी को पृथ्वी और भूदेवी के नाम से पुकारा जाता है, इसलिए कहीं-कहीं यह समय पृथ्वी के मासिक चक्र से जुड़े विकास का प्रतीक भी दर्शाता है, इसलिए इस समय किसी भी प्रकार की मिट्टी नहीं खोदी जाती है. इस समय खुदाई का कोई कार्य नहीं किया जाता है और पूजा की जाती है. भूदेवी का प्रतीक मानकर पूजा जाता है. मंदिरों में इस दिन पर विशेष पूजा अर्चना का विधान रहता है. 

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