काशी दुर्ग विनायक मंदिर में पाँच ब्राह्मणों द्वारा विनायक चतुर्थी पर कराएँ 108 अथर्वशीर्ष पाठ और दूर्बा सहस्त्रार्चन, बरसेगी गणपति की कृपा ही कृपा -10 सितम्बर, 2021
ऋषि पंचमी पूजा अनुष्ठान
भारतीय परंपरा में एवं वेद इत्यादि ग्रंथों में ऋषियों के स्वरुप को बहुत ही सुंदर ढंग से निरुपित किया गया है. पौराणिक काल से ही ऋषियों के प्रति किए जाने वाले भक्ति के कार्य आज भी मौजूद हैं. हिमालय का तो स्वरुप ही इन ऋषि मुनियों द्वारा परिभाषित हुए बिना संपूर्ण नही हो सकता है. प्राचीन काल में यह व्रत केवल पुरुषों द्वारा ही मनाया जाता था, लेकिन समय और आधुनिक दृष्टिकोण में बदलाव के साथ महिलाओं ने भी इसका पालन करना शुरू कर दिया है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है. सप्तर्षि की मूर्तियों की स्थापना और पूजा की जाती है, इसके बाद चंदन का तिलक लगाकर और फूल, धूप, दीया आदि चढ़ाते हैं. इस दिन पूजा में केसरी वस्त्र अथवा श्वेत वस्त्र का उपयोग शुभ होता है तथा मंत्रों का जाप करना चाहिए.
ऋषि पंचमी कथा
ऋषि पंचमी कथा का वर्णन कई रुपों में प्राप्त होता है, जिसका सार ऋषियों की कृपा दृष्टि और उनके शुभ कर्मों के द्वारा जगत कल्याण की बात को दर्शाता है. ऋषि पंचमी की एक कथा अनुसार प्राचीन काल में एक गांव में एक ब्राह्मण दंपति निवास किया करते थे. पति-पत्नी दोनों ही शुभ कर्मों को करने वाले थे, उनकी दो संतानें थी एक कन्या और एक पुत्र. पुजारी ने अपनी बेटी का विवाह एक ब्राह्मण परिवार में किया, लेकिन, प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण उनके दामाद की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है. विधवा बेटी अपने मायके आ जाती है और वहीं रहने लगती है. एक रात अचानक उसने देखा कि उसके शरीर पर भारी संख्या में कीड़े रेंग रहे होते हैं. अपनी बेटी की यह दशा देख माता-पिता व्याकुल हो उठते हैं वह उसे एक ऋषि के पास ले जाते हैं. जहां पुजारी उसे उनकी कन्या के पूर्व जन्म के वृतांत को सुनाता है. पूर्व जन्म में किए गए पापों के कारण ही उस कन्या को इस जन्म में इस प्रकार का कष्ट भोगना पड़ रहा था. ऋषि उन्हें सलाह देते हैं कि वे अपनी बेटी को अपने पिछले पापों से छुटकारा पाने के लिए भक्ति और विश्वास के साथ ऋषि पंचमी का व्रत रखने के लिए कहें. लड़की निर्देशानुसार उस व्रत को करती है और व्रत के प्रभाव स्वरुप पूर्व जन्मों के पापों के दुष्प्रभावों से उसे मुक्ति प्राप्त होती है.
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