हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, ब्रम्हाण्ड में कुल 33 कोटि देवी-देवता हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 33 करोड़ देवी-देवताओं में शनि देव न्याय के देवता हैं। शनि को कर्म फलदाता भी कहा जाता है। मनुष्य के अच्छे बुरे सभी कर्मो का फल शनि देव प्रदान करते हैं। शनि देव का नाम आते ही लोग उनके प्रकोप से होने वाली पीड़ा से डर जाते हैं। ऐसा नहीं है कि शनि की दशा केवल बुरे परिणाम लाती है। शनि की दशा जिस मनुष्य की कुंडली में अच्छी होती है, उनके लिए शनि हर क्षेत्र में उत्तम परिणाम लाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि सभी ग्रहों में सब से धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं। नौ ग्रहों में शनि देव का एक विशेष स्थान और महत्व है। ज्योतिष शास्त्र में भी शनि देव की अहम भूमिका है। जैसा कि हम सब जानते हैं ज्योतिष शास्त्र ग्रहों की गति और चाल की गणना के अनुसार कार्य करता है। मनुष्य की कुंडली में शनि की ख़राब स्थिति होने पर साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा जैसे शनि दोष से मनुष्य पीड़ित हो जाता है। ज्योतिष के साथ-साथ सनातन धर्म से जुड़े शास्त्रों का भी कहना है कि शनि से जुड़े दोष की वजह से व्यक्ति कई प्रकार की परेशानियों से घिर जाता है। जैसे- स्वस्थ का खराब हो जाना, प्रत्येक कार्य में बाधा आना और कोई भी काम आसानी से नहीं होना।
आइए जानते हैं, शनि की दृष्टि क्यों और कैसे पहुँचाती है हानि और कैसे बनाएँ शनि को लाभकारी...
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