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धार्मिक कथाओं के अनुसार एक बार राजा बलि स्वर्गलोक को जीतने के लिए तपस्या कर रहा था जिसके लिए उसने अश्वमेध यज्ञ करवाया था। भय के कारण अन्य देवता और राजाओं के साथ सभी भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे सहायता मांगी।
तब भगवान विष्णु ने एक बोने वामन का अवतार धारण किया। वह राजा बलि के पास जब उसका यज्ञ खत्म होने वाला था तब भिक्षा मांगने के लिए पहुंचे।
वामन अवतार में होने के कारण दैत्यराज बली भगवान विष्णु को पहचान नहीं पाए और उनका एक ब्राह्मण समझकर स्वागत किया।
जब बली ने वामन से भिक्षा मांगने को कहा तब भगवान ने वामन के रूप में तीन पग भूमि मांगी। तब राजा बली ने उन्हें तीन पग भूमि देने का वादा किया।
तब भगवान वामन ने अपना अवतार बड़ा कर दिया और एक पल में स्वर्ग और दूसरे पार्क में सारी पृथ्वी नाप ली।
अब तीसरा पग रखने के लिए कोई जगह नहीं बची तब राज्य राजा बली के सामने यह संकट उत्पन्न हो गया अगर वह वचन तोड़ता तो उसका यज्ञ खराब हो जाता तब उसने बोने वामन से कहा कि आप तीसरा पैर मेरे सिर पर रखिए।
भगवान विष्णु देते राजबली से प्रसन्न हो गए और उसे वरदान मांगने को कहा उसको तब देते राजबली ने मांगा की स्वयं भगवान दिन रात उसके द्वार पर खड़े रहे।
तब भगवान विष्णु ने बली की इस बात को स्वीकार किया। तब भगवान ने राजा बलि के द्वार पर पहरेदार बनने का कार्य किया।
तब काफी समय तक भगवान विष्णु उसके द्वार पर दवारपाल के रूप में खड़े रहे और काफी समय बाद अपने आवास स्वर्ग लोग वापस नहीं पहुंचे।
तो माता लक्ष्मी को उनकी चिंता होने लगी। मातालक्ष्मी ने उसी वक्त नारद जी को भ्रमण करते हुए देखा और उन्हें बुलाया तब मां लक्ष्मी ने नारद जी से पूछा आपने भगवान विष्णु को कही देखा है। तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को सारी बात बताई और अंत में माता लक्ष्मी ने उनसे भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय पूछा।
तब माता लक्ष्मी नारद नारदजी ने महालक्ष्मी को कहा कि आप आदित्य राज पति को अपना भाई बना ले तब आप नारायण जी को उनके पास से ला सकते हैं।
तब माता लक्ष्मी वेश बदलकर दैत्यराज बली के पास पहुंची और वहां जाकर रोने लगी जब राजा बलि ने उनसे उनके रोने का कारण पूछा तब माता लक्ष्मी ने बताया कि उनका कोई भाई नहीं है। इसलिए वह रो रही है तब माता के यह वचन सुनकर ने बली ने कहा कि आप मेरी धर्म बहन बन जाओ।
तब लक्ष्मी जी ने ऐसा ही किया और बलि की कलाई पर राखी बांधी दी और जब बलि ने उनसे कुछ मांगने को कहा तो उन्होंने भगवान विष्णु को बलि से मांग लिया। और इस तरह माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु की रक्षा की।
इस दिन सावन मास की पूर्णिमा का ही दिन था तब से राखी का त्यौहार मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिसके बाद ही रक्षाबंधन मनाया जाने लगा। और यह परंपरा आज तक चली आए है यह भाई बहन के पवित्र रिश्ते को बताता है।
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