विवाह को लेकर हो रही है चिंता ? जानें आपकी लव मैरिज होगी या अरेंज, बस एक फ़ोन कॉल पर - अभी बात करें FREE
पूजा का विधि जानते हैं।
राधा अष्टमी को धुम धाम से मनाया जाता हैं। कोई भी पूजन बेहतर तरीके से तभी सफल होता है। जब आपको उसका विधि मामूल हों आए आपको इसमें मदद करते हैं। राधा अष्टमी करने वाले सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पहले उठ स्नान कर लेना चाहिए।
(1)इसके बाद राधा रानी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए।
(2) इसके बाद विधि पूर्वक राधा रानी का श्रृंगार करें।
(4) पूजा स्थल पर एक छोटे से मंडप का निर्माण करें और उसके मध्यभाग में कलश की स्थापना करें।
(5) फिर कलश के ऊपर तांबे की तस्करी रखें।
अब इस पात्र पर राधा रानी की मूर्ति स्थापित करें।
पूजा का शुभ मुहूर्त
राधा रानी की पूजा के लिए मध्याह्न का मुहूर्त सबसे शुभ माना जाता है।
इस दिन राधा रानी के साथ ही कृष्ण जी की पूजा भी करनी चाहिए।
सुहागिनों के लिए राधा अष्टमी व्रत
राधा अष्टमी व्रत के लाभ: इस दिन सुहागिन स्त्रियां व्रत रखकर राधा रानी की पूजा करती हैं। मान्यता है इस व्रत से सभी प्रकार के दुखों का नाश हो जाता है और महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से भगवान कृष्ण की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। साथ ही धन संबंधी दिक्कतें भी दूर हो जाती हैं।
मान्यता के अनुसार, इस दिन माता राधा की पूजा करने वाले भक्तों को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता राधा को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है. ये कृष्ण जन्माष्टमी के समय था, वो भगवान विष्णु के साथ जाने की कामना करती थीं और भगवान श्री कृष्ण के लिए अपने सच्चे प्रेम और भक्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेती थीं.
माता राधा के निश्चछल प्रेम के बंधन में बंधे भगवान श्रीकृष्ण ने कई लीलाएं कीं जो कि आज के युग में भी प्रासंगिक हैं. इन दोनों के जीवन से सीखने लायक कई बातें हैं जिन्हें हमें अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए. माता राधा की आभा ही ऐसी थी कि हर कोई मोह के बंधन में एक बार को तो बंध ही जाता
राधा अष्टमी क्यों मनाया जाता हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन वृषभानु जी को तालाब में कमल के फूल पर एक नन्ही कन्या लेटी हुई मिली। वो उस कन्या को अपने घर ले आए। राधा जी को वो घर तो ले आये लेकिन वो आँखें नहीं खोल रही थी। राधा जी के आंखें न खोलने के पीछे मान्यता है कि वो जन्म के बाद सबसे पहले कृष्ण जी को देखना चाहती थी इसलिए दूसरों के लाख कोशिशों के वाबजूद भी उन्होनें तब तक अपनी आँखें नहीं खोली जब तक उनकी मुलाकात कृष्ण जी से नहीं हुई। पद्म पुराण के अनुसार एक बार वृषभानु जी यज्ञ के लिए भूमि साफ़ कर रहे थे उसी दौरान धरती की कोख से उन्हें राधा रानी प्राप्त हुईं। कहते हैं कि राधा जी जिस दिन वृषभानु जी को मिली थी उस दिन अष्टमी तिथि थी इसलिए इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
इस पितृ पक्ष, 15 दिवसीय शक्ति समय में गया में अर्पित करें नित्य तर्पण, पितरों के आशीर्वाद से बदलेगी किस्मत : 20 सितम्बर - 6 अक्टूबर 2021
इस पितृ पक्ष गया में कराएं श्राद्ध पूजा, मिलेगी पितृ दोषों से मुक्ति : 20 सितम्बर - 6 अक्टूबर 2021
सर्वपितृ अमावस्या को गया में अर्पित करें अपने समस्त पितरों को तर्पण, होंगे सभी पूर्वज एक साथ प्रसन्न -6 अक्टूबर 2021