इस पितृ पक्ष, 15 दिवसीय शक्ति समय में गया में अर्पित करें नित्य तर्पण, पितरों के आशीर्वाद से बदलेगी किस्मत : 20 सितम्बर - 6 अक्टूबर 2021
महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत का महत्व स्त्री और लड़कियां अपने परिवार की सुख सुविधा और अपने संतान की सुख के लिए रखती हैं। राधा को श्री कृष्ण की बाल साथी और उनकी एक तरह से लक्ष्मी के अवतार में अर्धांगिनी भी माना जाता है। यही कारण है कि यह व्रत अपने आप में एक विशेष स्थान रखता है।
आइए जानिए पूजा की पूरी प्रक्रिया
• प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठ जाएं। और स्नान कर तन और मन से स्वच्छ हो जाएं। और साफ कपड़े पहन ले।
• इसके बाद अगर आपके घर में मंडप है या आंगन के बीच में एक मंडल बना ले। मंडप के मध्य मिट्टी या तांबे का लोटा पानी से भर कर रखते दे।
• अब तांबे के लोटे पर या अगर आपने मिट्टी का लोटा रखा है तो उसको एक तांबे की प्लेट से ढक दें।
• अब आप उस पर वस्त्र आभूषण से सुसज्जित राधा रानी को बिठा दे।
• आरती का सारा सामान तैयार करने। आरती की थाली में सुहागन के निशानियां जैसे सिंदूर, चुनिया, काजल, बिंदी और आदि समान आरती में अवश्य ही रखें।
• अब राधा रानी की मन से षोडशोपचार से पूजा शुरू करें।
• राधा रानी की पूजा ठीक मध्याह्न के समय ही शुरू करें।
• पूजा के बाद पूरे दिन का उपवास करें या एक समय चाहे शाम या सुबह की रोटी भी खा सकते है।
• आप लोगों को पूजा के बाद आरती भी आवश्यक रूप से करनी है।
• आरती समाप्त होने के बाद आप स्वयं और अपने पुत्र और पति को भी प्रसाद ग्रहण करने को दें।
• शाम के समय एक दिया तुलसी माता के सामने जगाए। और कृष्णा को याद करें।
• अगले दिन किसी ब्राह्मण या किसी विवाहित स्त्री को भोजन करवाएं और दक्षिणा भी दे।
व्रत का सही समय
इस बार राधा अष्टमी का व्रत 14 सितंबर को प्रारंभ हो जाएगी।
राधा अष्टमी का व्रत का प्रारंभ 13 सितंबर रात्रि 3:00 बज कर 10 मिनट से प्रारंभ हो जाएगा।
और समाप्ति का समय 14 सितंबर है रात्रि 1:00 बज करें 9 मिनट तक रहेगा।
आपने राधा अष्टमी के व्रत के बारे में अच्छे से जान लिया है अब आप इस व्रत को हर साल अवश्य रूप से रखें यह व्रत आपके और आपके परिवार में सुख समृद्धि और संतान की प्राप्ति सुखों में वृद्धि में मदद करेगा।
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