जिस तरह हर माह में द़ो एकादशी मनायी जाती है। ठीक उसी तरह हर माह में दो प्रदोष मनायी जाती है। जिसका सम्बन्ध शिव से होता है ऐसी मान्यता है कि प्रदोष व्रत को करने से चंद्र का दोष दूर होता है।
क्या है प्रदोष व्रत ?
प्रदोष व्रत हर माह की त्रयोदश को होता है। बता दें कि जिस तरह एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान होता है ।उसी तरह
प्रदोष में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है ।जो भी व्रती प्रदोष का व्रत रखता है। उस पर अगर कोई चंद्र का दोष है तो भगवान शिव की कृपा से दूर होता है।
कब है प्रदोष ?
24 मई दिन सोमवार को इस बार प्रदोष है ।
प्रदोष व्रत की विधि:
1.व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठें।
2.नित्यकर्म से निपटने के बाद सफेद रंग के कपड़े पहने।
3.पूजाघर को साफ और शुद्ध करें।
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4.गाय के गोबर से लीप कर मंडप तैयार करें।
5.इस मंडप के नीचे 5 अलग अलग रंगों का प्रयोग कर के रंगोली बनाएं।
6. फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और शिव जी की पूजा करें।
7.पूरे दिन किसी भी प्रकार का अन्य ग्रहण ना करें।
क्या है प्रदोष व्रत की कथा ?
पद्म पुराण की एक कथा के अनुसार चंद्रदेव जबअपनी 27 पत्नियों में से सिर्फ एक रोहिणी से ही सबसे ज्यादा प्यार करते थे और बाकी 26 को उपेक्षित रखते थे जिसके चलते उन्हें श्राप दे दिया था जिसके चलते उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। ऐसे में अन्य देवताओं की सलाह पर उन्होंने शिवजी की आराधना की और जहां आराधना की वहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया। शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें न केवल दर्शन दिए बल्कि उनका कुष्ठ रोग भी ठीक कर दिया। चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इस स्थान का नाम 'सोमनाथ' हो गया।
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