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जानिए क्या है प्रबोधिनी एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाने का प्रमुख कारण

my jyotish expert Updated 16 Nov 2021 10:45 AM IST
prabodhini ekadashi
prabodhini ekadashi - फोटो : google
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एकादशी  कार्तिक मास के शुक्ल्लपक्ष में आती है और इसे श्री विष्णु जी के योग निंद्रा से जागने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है.  प्रबोधिनी एकादशी, को कार्तिकी एकादशी, देव उठनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी इत्यादि नामों से भी जान अजाता है. हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण एकादशी व्रतों मेंसे एक होती है ये प्रबोधनी एकादशी. देव उठानी के साथ ही आरंभ होता है सभी मांगलिक कार्यों का. शुभ कार्यों के आगमन का समय होता है इसी समय पर विवाह के शुभ समय का आरंभ भी हो जाता है. प्रबोधिनी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, वैष्णवों तथा अन्य संप्रदायों द्वारा भी देश के विभिन्न हिस्सों में पूरे उत्साह और जोश के साथ मनाई जाती है. भक्त भगवान विष्णु से उनके दिव्य आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए व्रत उपवास म्म्त्र जाप इत्यादि धार्मिक अनुष्ठान करते हैं. प्रबोधिनी एकादशी 2021 14 नवंबर रविवार
को मनाई जाएगी. एकादशी तिथि का समय: 14 नवंबर, सुबह 5:48 बजे - 15 नवंबर, सुबह 6:39 बजे तक होगा. 

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तुलसी विवाह 
देव एकादशी के शुभ दिन पर तुलसी विवाह भी किया जाता है और 'चतुर्मास' अवधि - जब भगवान विष्णु अपनी नींद में होते हैं, प्रबोधिनी एकादशी के साथ समाप्त हो जाती है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु शयनी एकादशी पर सोने के लिए चले जाते हैं और प्रबोधिनी एकादशी पर जागते हैं. जो चार माह का समय होताहै ओर इन समय पर सभी धार्मिक कार्यों को तो किया जाता है लेकिन विवाह, गृह प्रवेश या इस प्रकार के नए कार्य कुछ समय के लिए स्थगित कर दिए जाते हैं.प्रबोधिनी एकादशी का उत्सव महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में बहुत प्रसिद्ध है. महीने भर चलने वाला प्रसिद्ध 'पुष्कर मेला' इसी दिन से शुरू होता है और प्रसिद्ध कार्तिक माह पंडरपुर यात्रा प्रबोधिनी एकादशी के दिन समाप्त होती है. प्रबोधिनी एकादशी रमा एकादशी के बाद आती है और उसके बाद उत्पन्ना एकादशी आती
है. 

प्रबोधिनी एकादशी के दौरान पूजा अनुष्ठान
प्रबोधिनी एकादशी के दिन पवित्र नदियों या जल सरोवरों में स्नान करना शुभ और पुण्यदायी माना जाता है. इस दिन किसी भी हिंदू तीर्थ में स्नान करने की अपेक्षा धार्मिक स्नान करना अधिक लाभकारी होता है. इसलिए इस व्रत के पालनकर्ता सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करते हैं तथा व्रत का संकल्प लेते हैं. प्रबोधिनी एकादशी पर भक्त उपवास रखते हैं. वे पूरा दिन बिना खाए-पिए बिना भगवान की भक्ति में व्यतीत कर देते हैं.  शाम को भगवान विष्णु के मंदिरों में विशेष पूजा आयोजित होती है तथा यज्ञ अनुष्ठान संपन्न होते हैं. 


देव उत्थान एकादशी के दिन पूजा स्थल पर
भगवान विष्णु का चित्र बनाया जाता है. कुछ स्थानों पर, भगवान के सोने के प्रतीक के रूप में पीतल के स्थान से ढक दिया जाता है. भगवान विष्णु की पूजा दीपों, फलों से की जाती है. भक्ति गीत या भजन गाते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वे अपनी नींद से उठें और सभी पर आशीर्वाद बरसाएं. इस दिन भगवान विष्णु का देवी तुलसी से विवाह भी किया जाता है और इस समारोह को 'तुलसी विवाह' के रूप में जाना जाता है. कुछ स्थानों पर इस कार्य को प्रबोधिनी एकादशी के अगले दिन भी किया जाता है |


प्रबोधिनी एकादशी का महत्व
प्रबोधिनी एकादशी की महानता सबसे पहले भगवान ब्रह्मा ने ऋषि नारद को सुनाई थी और इसका उल्लेख 'स्कंद पुराण' में मिलता है. यह हिंदुओं के लिए बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह विवाह, नामकरण समारोह, गृह प्रवेश आदि जैसे शुभ समारोहों की शुरुआत का प्रतीक होता है. प्रबोधिनी एकादशी 'स्वामीनारायण संप्रदाय' के बीच अत्यधिक महत्व रखती है. यह दिन गुरु रामानंद स्वामी द्वारा स्वामीनारायण की धार्मिक दीक्षा का भी होता है. भक्त जीवन भर किए गए अपने बुरे कर्मों और पापों की समाप्ति हेतु उपवास का पालन करते हैं, साथ ही प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति
मोक्ष प्राप्त कर सकता है और मृत्यु के पश्चात 'वैकुंठ' को पाता है.

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