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जानिए क्यों किया जाता है गया में पितरों का श्राद्ध और क्या है इसका महत्व

My Jyotish Expert Updated 03 Oct 2021 06:01 PM IST
shradh 2021
shradh 2021 - फोटो : google photo
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गया को विष्णु जी की नगरी माना जाता है। तथा गया को मोक्ष की भूमि भी कहा जाता है। तथा साथ ही हमारे पौराणिक ग्रंथ जैसे विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी स्थान का वर्णन मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार यह माना जाता है कि गया में पूर्वजों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। उन्हें स्वर्ग प्राप्त होता है। यह माना जाता है कि भगवान विष्णु गया में पितृ देवता के रूप में स्थित होते हैं इसी कारण इसे पितृ तीर्थ कहा जाता है। तथा पूर्वजों की आत्मा शांति के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध करना और पिंडदान को शुभ माना जाता है। ज्यादातर लोगों की यह इच्छा होती है कि वह अपने पूर्वजों का पिंड दान गया जाकर करें। क्योंकि हिंदू ग्रंथों के अनुसार यह माना जाता है कि पिंड दान मोक्ष प्राप्ति का एक सरल मार्ग है। वैसे तो लोग देश के कई स्थानों पर पिंडदान करते हैं। परंतु बिहार में फल्गु नदी के किनारे स्थित गयाजी में पिंड दान करना एक अपने आप में ही महत्व रखता है। और यह भी माना जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने दशरथ जी के निधन के बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए गयाजी में ही पिंडदान किया था। गयाजी में पहले पिंडदान करने के लिए कुल 360 वेदियां थी परंतु अब केवल 48 वेदियां ही बची है। इन वेदियों पर लोग अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण करते हैं। पिंडदान के लिए प्रतिवर्ष लाखों लोग देश विदेश से गया जी में आते हैं।


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• पौराणिक मान्यता

पौराणिक
मान्यता और किवंदंतियों के अनुसार यह माना जाता है कि भस्मासुर के वंश में एक गयासुर नाम का राक्षस हुआ। जिसने कठिन तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया ।तथा उसने वरदान में यह मांगा की उसका शरीर देवता गणों की तरह पवित्र और साफ हो जाए तथा उसके दर्शन मात्र से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाए। परंतु इस वरदान को देने के बाद स्वर्ग में लोगों की जनसंख्या बढ़ने लगी। और प्रत्येक घटना प्राकृतिक नियमों के विपरीत होने लगी। समाज के सभी लोग बिना किसी पाप के भय से पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन मात्र से ही अपने पापों से मुक्त होने लगे। इससे देवताओं को चिंता होने लगी और उन्होंने इससे बचने के लिए एक उपाय सोचा। उन्होंने गयासुर से यज्ञ करने के लिए एक पवित्र स्थान मांगा। तो गयासुर ने स्वयं के शरीर को देवताओं के यज्ञ के लिए दे दिया। और जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पूरे 5 कोस में फैल गया। तब से ही उस स्थान को गया जी के नाम से जाना जाता है जो गयासुर के नाम पर है। यही कारण है कि लोग अपनी पितरों का श्राद्ध करने और तर्पण के लिए गयाजी जाते हैं।
पंडितों के अनुसार यह माना जाता है कि फल्गु नदी के तट पर जब तक पिंडदान नहीं किया तब तक पिंडदान नहीं माना जा सकता। पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के तट से प्रारंभ होती है। और पौराणिक धारणाओं के अनुसार यह भी माना जाता है कि परिवार का केवल एक सदस्य ही गयाजी में गया करता है। यहां गया का अर्थ है की गयाजी में पितरों का श्राद्ध करना और पिंडदान करना। गरुड़ पुराण के अनुसार यह माना जाता है कि गयाजी जाने की सफर में एक-एक कदम आपके पूर्वजों के लिए स्वर्ग की सीढ़ी के समान होता है। जैसे-जैसे आप गयाजी जाते हैं वैसे वैसे उनके लिए स्वर्ग की सीढ़ी बनती रहती है।

• क्या है महत्व गया जी श्राद्ध का

गयाजी में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्ति होती है तथा इसे मोक्ष स्थली भी कहा जाता है। तथा गयाजी में प्रत्येक वर्ष 17 दिन का मेला लगता है। जिसे पितृपक्ष मेला कहा जाता है। पितृपक्ष में फल्गु नदी के किनारे पर विष्णुपद मंदिर के पास और अक्षयवट के करीब पिंड दान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 


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