"ओम देवताभै: पितृभयशच महायोग्य एव च
नम स्वाहार्य स्वधाया नित्यमे नमो नमः। । "
इस जाप को करने से पित्र दोष कम होता है।
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पितृ तर्पण करना एक प्रथा समान हो गया है। ज्योतिषशास्त्र की माने तो हिंदू धर्म में किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में पित्र दोष हो तो उन्हे जल्द से जल्द पूजा करवानी चाहिए। धार्मिक ग्रंथों से पता चला है कि जो व्यक्ति अपने माता-पिता को नुकसान पहुंचाते हैं या उनका अपमान करते हैं तो जब वे धरती से दुखी मन से प्राण त्यागते है और उनका श्राद भी नहीं कराते, इसी कारण उनकी कुंडली में पित्र दोष पैदा हो जाता है। अंतरिक्ष में पित्र वायुबिय
शरीर धारण करके रहते हैं। जब श्राद्ध कार्य प्रारंभ होता है, यह सुनकर ही उन्हे सुख अनुभूति की प्राप्ति होती है। पितृदोष "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" का भी जाप करने से लाभ मिलता है।
पितृपक्ष 16 दिनों तक चलता रहता है। इस वर्ष भी 20 सितंबर सोमवार से 6 अक्टूबर बुधवार तक रहेगा । पंचांग अनुसार यह भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होगा। और आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक रहेगा। हम ज्यादातर असमंजस में रहते हैं कि उन्हें अन्न प्रदान करने से पितरो को यह भोजन कैसे मिलता है। अपना शरीर त्यागने के बाद नया जीवन अलग-अलग रूप ले लेता है। कोई देवता बन जाता है, तो कोई वृष, कोई किसी जानवर का रूप ले लेता है, तो कोई कौए की, तो चीटी की। कभी-कभी कुछ चीजें बड़े विचार में डाल देती हैं कि एक छोटी सी पिंड से हाथी का कल्याण कैसे हो सकता है या देवताओं को कैसे संतोष मिलता होगा। शास्त्र में पता चलता है कि नाम, गोत्र के सहारे विश्वदेव को प्राप्त करा देते हैं। मनुष्य योनि में हो तो अन्न रूप में या पशु योनि मे होने में होने पर श्राद त्रर् रूप में प्राप्त होते हैं । साथ ही नाग योगिनी में वायु रूप में, यश योनियों में पान रूप में और श्राद वस्तु भोग प्रदान कराते हैं । जिस प्रकार मां अपने बेटे को किसी ना किसी प्रकार से ढूंढ लेती है , इसी प्रकार मंत्र श्राद वस्तु को ढूंढ ही लेता है । श्राद्ध दो प्रक्रिया से किया जा सकता है - पहला पिंडदान और दूसरा ब्राह्मण भोजन। माना जाता है कि देवलोक में पहुंचने वाले को याद करके मंत्र द्वारा धरती पर बुलाया जाता है। अथर्ववेद में भी लिखित है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितरों को भोजन प्राप्त हो जाता है। असल में पित्र अंतरिक्ष में वायु युक्त शरीर धारण कर निवास करते हैं ।श्राद्ध देश को आकर ब्राह्मणों के साथ भोजन तृप्त किया करते हैं । पितृलोक अद्रश्य होते हैं। मनुस्मृति द्वारा लिखित है कि ब्राह्मणों में ही गुप्त रूप से निवास कर रहे होते हैं प्रात काल में निमंत्रित ब्राह्मणों के साथ ही पितृ भी आ जाते हैं और अदृश्य रूप में ब्राह्मणों के रूप में भोजन की सामग्री ग्रहण कर लेते हैं। सूक्ष्म शरीर की पहचान होती है कि वे जल, अग्नि तथा वायु में भी प्रधान होते हैं। वे जब चाहें तब धरती पर आ जा सकते हैं हवाई रूप में।
तथा ध्यान रखे सभी लोगों को पितरों को अच्छी तरह से मन पसंदीदा भोजन करवाकर ब्राह्मणों को ग्रहण करवाना चाइये और साथ ही जरूरत की चीज़े व दान दक्षिणा अवश्य दें इससे पितरों को खुशी मिलती है।
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