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जानिए पितृपक्ष में किन स्थानों पर पिंडदान करने का होता है चमत्कारी महत्व, होती है मोक्ष की प्राप्ति

My Jyotish Expert Updated 27 Sep 2021 01:05 PM IST
पिंडदान
पिंडदान - फोटो : google
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20 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो गई है। पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए उनके प्रति श्रृद्धा प्रकट करते हैं और उनके नाम से तर्पण, श्राद्ध, ब्राहम्णभोज कराते हैं। मान्यता है कि यमराज भी इन दिनों पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं ताकि 16 दिनों तक वह अपने परिजनों के बीच रहकर अन्न और जल ग्रहण कर संतुष्ट हो सकें। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म के अलावा एक और महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है वह है पिंडदान। पिंडदान अपने पूर्वजों की मुक्ति हेतु किया जाने वाला दान है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार पिंडदान करने से मृत वयक्ति को जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि किसी व्यक्ति के मृत्यु पश्चात अगर पिंडदान न हो तो उसकी आत्मा को कष्ट झेलना पड़ता है। इसलिए लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करना नहीं भूलते।

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मोक्षदायिनी है गया- भारत में पिंडदान कई जगह होता है लेकिन “गया” में पिंडदान का विशेष महत्व है। गया मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में इस बात का उल्लेख है कि जो व्यक्ति पिंडदान करने के लिए गया जाता है उनके पूर्वजों को स्वर्ग मिलता है। क्योंकि भगवान विष्णु यहां स्वयं पितृदेवता के रूप में मौजूद है। 

गया में पिंडदान का के पीछे कई कथाएं हैं प्रचलित-
 
बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान व श्राद्ध कर्म करना सबसे फलदायी माना जाता है। इसकी पीछे कई धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था।

एक और कथा के अनुसार भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या की और ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि वह देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और उसके दर्शनभर से लोगों के पाप दूर हो जाए। लेकिन इस वरदान के मिलने के बाद पाप बढ़ने लगा। लोग पाप करते और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त हो जाते। यह सब देखकर देवता बहुत चिंतित हुए और इससे बचने के लिए देवताओं ने गयासुर से यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग की। जिस पर गयासुर लेट गया और उसका शरीर पांच कोस तक फैल गया और तब देवताओं ने यज्ञ किया। इसके बाद देवताओं ने गयासुर को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस जगह पर आकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म और तर्पण करेगा उसके पूर्वजों को मुक्ति मिलेगी। तबसे इस जगह को गया के नाम से जाना जाता है। यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गया आते हैं।

पंड़िता के अनुसार फल्गु नदी के तट पर ही पिंडदान होना चाहिए। पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है। गरूड़ पुराण में लिखा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं। जानकारों के मुताबिक गया में विभिन्न नामों से 360 वेदियां थी जहां पिंडदान किया जाता था, इनमें से 48 बची हैं। इस जगह को मोक्षस्थली कहा जाता है। हर साल पितपक्ष में यहां 17 दिन के लिए मेला लगता है। कहा जाता है कि पितृपक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।

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