माँ कालरात्रि के तीन नेत्र हैं, यह तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के समान गोल हैं। इनकी श्वांस से अग्नि निकलती रहती है। यह गर्दभ की सवारी करती हैं। यह अपने दाहिनी ओर के दोनों हाथों में वरमुद्रा व अभयमुद्रा धारण किए हुए हैं। जिससे वह अपने भक्तों को निडर व निर्भीक होने का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। बाईं ओर के हाथों में इन्होने लोहे का कांटा व खड्ग लिया है जिससे वह असुरों का विनाश करती हैं।
इनका रूप भले ही भयामय हो परन्तु यह सदैव ही अपने भक्तों को शुभ वर देती हैं। देवी द्वारा अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने के कारण इन्हे शुभंकरी भी कहा जाता है। कहते है की भक्तों को इनके रूप से डरना नहीं चाहिए बल्कि इनके रूप के साक्षात्कार से तो भक्त पुण्य के भागी बनते हैं। देवी की उपासना से मन के सभी डर दूर हो जाते हैं एवं भक्तों में आत्मविश्वास की बढ़ोतरी होती है।
नवरात्रि पर कन्या पूजन से होंगी मां प्रसन्न, करेंगी सभी मनोकामनाएं पूरी
कालरात्रि की आराधना करने से संसार की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुर व बुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। जिसके कारण दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। यह ग्रहों से उत्पन्न होने वाली बाधाओं को भी दूर करती हैं तथा अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि का भय भी दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है। देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माता देवी - काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालरात्रि के अन्य नाम हैं |
यह भी पढ़े
नवरात्रि पर बिना अखंड ज्योत के भी कैसे पूरी होंगी आपकी मनोकामनाएं
रविवार के दिन इन कार्यों से छिन सकता है मान सम्मान