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जानिए नवरात्र के दौरान क्यों की जाती है मां दुर्गा की नौ रूपों में पूजा

my jyotish expert Updated 03 Oct 2021 01:14 PM IST
shardiye navratri 2021
shardiye navratri 2021 - फोटो : google
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इस वर्ष 2021 में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 7 अक्टूबर से 15 अक्टूबर 2021 तक है। जानकारी देते हैं कि शारदी नवरात्रि की शुरुआत अश्वनी मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है और दशहरा पर समाप्त हो जाती है।नवरात्रि वर्ष में चार बार मनाई जाती है। दो बार गुप्त नवरात्रि और दो बार मुख्य रूप से नवरात्रि का त्यौहार आता है। इसमें चैत्र और शारदीय मुख्य नवरात्रि होती हैं इसे देशभर में पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। नवरात्रि का मतलब होता है की 9 दिन और रात तक चलने वाली मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना होती है। नवरात्रि के पर्व को काफी पवित्र माना जाता है और इन दिनों कोई भी शुभ कार्य करना काफी अच्छा होता है। शास्त्रों में नवरात्रि को विशेष पर्व माना गया है और काफी महत्व दिया गया है इसलिए व्यक्ति नवरात्रि का बेसब्री से इंतजार करते हैं।

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दुर्गा के नौ रूपों की क्यों करते हैं पूजा आइए जानते हैं?

नवरात्र मां दुर्गा की स्थापना हेतु मनाया जाता है। हिंदू धर्म में नवरात्रि एवं बंगाली धर्म में नवरात्र 9 दिन चलता है और प्रथम दिन उनकी स्थापना और समापन कर दिया जाता है। हरवर्ष पितृपक्ष के तुरंत बाद नवरात्र प्रारंभ हो जाता है। नवरात्र के दौरान हर जगह मां दुर्गे की स्थापना की जाती है और जगह-जगह माता रानी की भक्ति गूंजने लगती है। मां दुर्गा को शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। शुरुआत के 3 दिन मां दुर्गा की शक्ति और ऊर्जा की ही पूजा की जाती है। इसके पश्चात 3 दिन तक जीवन में शांति देने वाली माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है। माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना के दौरान भक्तगण अपने जीवन में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए दिन-रात पूजा अर्चना करते हैं एवं आर्थिक समस्या देखने को नही मिले उसके लिए प्रार्थना करते हैं। इसके बाद सांतवें दिन सरस्वती देवी जो कला और ज्ञान की देवी हैं,उनकी पूजा की जाती है और वह दिन उनको ही समर्पित रहता है। भक्तिगण मां सरस्वती से काफी विनती करते हैं कि उन्हें ज्ञान मिले और उनका आशीर्वाद प्राप्त हो। आठवें दिन महागौरी जी की पूजा की जाती है एवं अंतिम दिवस यानी नवमी को मां सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है। 9 दिन तक भक्तिगण तन मन धन से पूजा अर्चना करते हैं एवं भक्ति में लीन हो जाते हैं।

कलश की स्थापना का महत्व क्या होता है आइए जानते हैं?

पुराणों के अनुसार नवरात्र का पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। नवरात्रि के प्रथम दिन ही कलश की स्थापना कर दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि कलश को भगवान विष्णु जी का स्वरूप माना जाता है इसलिए पूजा से सबसे पहले कलश की स्थापना करते हैं। 

कलश की स्थापना की विधि क्या होती है आइए जानते हैं?

नवरात्र प्रारंभ होने के पश्चात सुबह स्नान करके वस्त्र पहन कर, मंदिर में साफ सफाई करें। तत्पश्चात मंदिर के स्थान के पास सफेद एवं लाल कपड़ा बिछाए जो बिल्कुल नया होना चाहिए। इसके बाद कपड़े के ऊपर चावल व गेहूं का ढेर लगाएं। एक मिट्टी के बर्तन में थोड़े से जो वो हैं और इसका ऊपर से जल से भरा हुआ कलश स्थापित कर दें । कलर्स पर रोली के द्वारा स्वास्तिक बनाकर और कलावा बांधकर उसकी स्थापना करें। इसके बाद कलश के ऊपर नारियल लेकर उसके ऊपर चुन्नी लपेटकर एवं कलावे से बांधकर कलस के ऊपर स्थापित करिए।
इस दौरान कलर्स के अंदर सुपारी चावल और दक्षिणा डाल दें। यदि आम या अशोक के पत्ते मिले तो कलश के ऊपर रखकर ढक दें। इसके बाद मंत्रों द्वारा मां दुर्गे मैया का आवाहन करें। आवाहन के बाद धूप दीप जलाकर कलश की पूजा एवं आरती करें। कलर्स मिट्टी सोना चांदी एवं पीतल किसी भी धातु का मान्य होता है केवल वह शुद्ध होना चाहिए।



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