क्या है तुलादान
यदि ध्यान दिया जाए तो हिन्दू धर्म में कई प्रकार के दान किये जाते हैं। जैसे गऊ-दान, स्वर्णदान, भू-दान आदि। इसी प्रकार हिंदू धर्म में तुलादान भी बहुत जाना पहचाना हुआ दान है। इस दान को महादान भी कहा जाता है। इस दान को कई दूसरे दानों से ज़्यादा महत्व दिया जाता है। इसमें दान करने वाला व्यक्ति अपने वज़न के बराबर खाद्य और धन का दान पूरी निष्ठा से करता है।
तुलादान के पीछे छुपी पौराणिक कथा
कथा भगवान कृष्ण और सत्यभामा से जुड़ी हुई है। एक बार सत्यभामा ने कृष्ण पर अधिकार हेतु नारद को दान कर दिया। इसके बाद सत्यभामा को अपनी भूल का एहसास तब हुआ जब नारद अपने साथ श्रीकृष्ण को लेकर के जाने लगे। सत्यभामा ने नारद से माफी मांगते हुए उनसे दान में कुछ और मांगने का विनय किया। नारद ने उनसे श्रीकृष्ण के भार के बराबर धन और अन्न मांगा। जब तराजू मंगा कर भगवान के बराबर भार का सामान और संपत्ति रखी गयी तो कृष्ण का पलड़ा बिल्कुल भी ऊपर नहीं उठा किन्तु पूरी राज्यसम्पत्ति समाप्त हो गई। इसके बाद सत्यभामा को जब समझ आया तो उन्होंने तुला के दूसरे पलड़े में एक तुलसी की पत्ती रख दी। इससे कृष्ण का भार दूसरे तुले के बराबर हो गया। इसके पश्चात कृष्ण ने बताया कि आज से तुलादान महादान के नाम से जाना जाएगा। इसको करने वाला व्यक्ति यश, सर्वसुख, वैभव और ऐश्वर्या का मालिक होगा। तभी से अनेक तरह के लोग इस दान को करते आ रहे हैं।
कुम्भ 2021 में शिव शंकर को करें प्रसन्न कराएं रुद्राभिषेक, समस्त कष्ट होंगे दूर
ज्योतिष से तुलादान का संबंध
मान्यता अनुसार इस दान हेतु नौ ग्रह सामग्रीयों को दान में दिया जाता है। ऐसा ग्रहों की शांति के लिये किआ जाता है। नौ ग्रहों के दान से स्वास्थ्य को तो लाभ होता ही है साथ ही धन और संबंध लाभ भी होते हैं। क्योंकि नवग्रह कई चीजों के कारण और कारक होते हैं। इसलिए इनका दान तुला दान करने के दौरान किया जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से काफी शुभ परिणाम मिलना तय है। इसके साथ ही यदि आप अपनी कुंडली का आकलन करवाकर दान के लिए जाते हैं तो आपको इससे और भी अधिक लाभ होता है।
कैसे करें तुला दान?
तुला दान करने के लिए आपको सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करना चाहिए। इसके बाद जातक को तराजू की परिक्रमा करने के बाद उसके एक पलड़े पर बैठना होता है। इसके उपरांत पंडित दूसरे पलड़े पर जातक के भार के अनुसार धन और अन्न स्थापित करते हैं। जब दोनों पलड़े बराबर भार के हो जाते हैं तो इसके बाद इस महादान को आधा-आधा करके, गुरु और ब्राह्मण को दान में दे दिया जाता है। यह दान बेहद ही सकारात्मक परिणामों के लिए जाना जाता है और इसके साथ ही यदि इस दान को मकर संक्रांति के दिन किया जाए तो इसके और भी कई लाभ होते हैं।
यह भी पढ़े :-
बीमारियों से बचाव के लिए भवन वास्तु के कुछ खास उपाय !
क्यों मनाई जाती हैं कुम्भ संक्रांति ? जानें इससे जुड़ा यह ख़ास तथ्य !
जानिए किस माला के जाप का क्या फल मिलता है