नवरात्रि के नौ दिन माता रानी को प्रसन्न करने के दिन होते हैं । जिसमें लोग नौ दिन तक सच्चे मन से नवरात्रि के व्रत रखते हैं। वैसे तो नवरात्रि के नौ दिन का अपना महत्व है । किन्तु नवरात्रि की सप्तमी के दिन का विशेष महत्व है। ये दिन महाकाली का होता है। जो अपने भक्तो की रक्षा के लिए दुष्टों का विनाश करती है ।
माता महाकाली साहस का प्रतीक मानी जाती है जो की अत्यंत शुभकारी होती है जिनके कारण माता को शुभकारी के नाम से भी जाना जाता है । माता कालरात्रि की पूजा करने से उनके भक्त हमेशा के लिए भयमुक्त हो जाते है । इसके अलावा उनके भक्त को अग्नि भय, रात्रि भय और शत्रु भय, जल भय नहीं होता है।
माँ कालरात्रि देवी का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है । उनके गले में विद्युत की माला और बाल बिखरे हुए हैं। मां के चार हाथ हैं, जिनमें से एक हाथ में गंडासा और एक हाथ में वज्र है। इसके अलावा, मां के दो हाथ क्रमश: वरमुद्रा और अभय मुद्रा में हैं। इनका वाहन गर्दभ है।
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कैसे हुई माता कालरात्रि की उत्पत्ति
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार
शुंभ, निशुंभ और रक्तसुर ने चारों तरफ अपना अधिपत्य जमा लिया था । जिसके प्रभाव से चारों तरफ जनता के त्राहि मान -त्राहि मान के स्वर गूजने लगे तब भगवान विष्णु, ब्रह्मा समेत सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और भगवान शिव से ये प्रार्थना की वो शुंभ, निशुंभ और रक्तसुर का वध करे तब भगवान शिव ने ये कार्य माता पार्वती को सौंप दिया माता पार्वती ने शिव की आज्ञा मानकर शुंभ, निशुंभ का वध कर दिया । किन्तु माता पहली बार में रक्तसुर का वध नहीं कर सकेगी क्योंकि रक्तसुर के रक्त की बूंद जहाँ पड़ती ।
वहाँ रक्तसुर सुर का जन्म होता तब माता पार्वती ने कालरात्रि का रूप धारण किया और वो रक्तसुर का वध करने पहुंची माता रानी ने रक्तसुर का वंध करते ही उसकी एक बूंद जमीन पर पड़ने से पहले ही उसका पान कर लिया । और इस तरह माता कालरात्रि ने रक्तसुर का वध कर दिया चारों तरफ माता कालरात्रि के जयकार- जयकार होने लगे और माता कालरात्रि को दृष्टो का नाश करने के नाम से जाना जाने लगा ।
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