myjyotish

6386786122

   whatsapp

6386786122

Whatsup
  • Login

  • Cart

  • wallet

    Wallet

विज्ञापन
विज्ञापन
Home ›   Blogs Hindi ›   Mythology mahakaali significance story navaratri

जानें माँ महाकाली की उत्पत्ति की कहानी

Myjyotish Expert Updated 04 Apr 2021 10:06 AM IST
Mahakaali
Mahakaali - फोटो : Myjyotish
विज्ञापन
विज्ञापन

नवरात्रि  के नौ दिन  माता रानी को प्रसन्न करने के दिन होते हैं । जिसमें लोग नौ दिन तक सच्चे मन से  नवरात्रि के व्रत रखते हैं। वैसे तो नवरात्रि के नौ दिन का अपना महत्व है । किन्तु नवरात्रि की सप्तमी के दिन का  विशेष महत्व है। ये दिन महाकाली का होता है। जो अपने भक्तो की रक्षा के लिए दुष्टों का विनाश करती है । 

माता महाकाली साहस का प्रतीक मानी जाती है जो की अत्यंत शुभकारी होती है जिनके कारण माता को शुभकारी के नाम से भी जाना जाता है । माता कालरात्रि की पूजा करने से उनके भक्त हमेशा के लिए भयमुक्त हो जाते  है ।  इसके अलावा उनके भक्त को अग्नि भय, रात्रि भय और शत्रु भय, जल भय नहीं होता है। 

माँ कालरात्रि देवी का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है  ।  उनके गले में विद्युत की माला और बाल बिखरे हुए हैं। मां के चार हाथ हैं, जिनमें से एक हाथ में गंडासा और एक हाथ में वज्र है। इसके अलावा, मां के दो हाथ क्रमश: वरमुद्रा और अभय मुद्रा में हैं। इनका वाहन गर्दभ है।

इस नवरात्रि कराएं कामाख्या बगलामुखी कवच का पाठ व हवन : 13 से 21 अप्रैल 2021 - Kamakhya Bagalamukhi Kavach Paath Online
 


कैसे हुई माता कालरात्रि की उत्पत्ति

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 

शुंभ, निशुंभ  और रक्तसुर ने चारों तरफ अपना अधिपत्य जमा लिया था । जिसके प्रभाव से चारों तरफ जनता के त्राहि मान -त्राहि मान के स्वर गूजने  लगे तब भगवान विष्णु, ब्रह्मा समेत सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और भगवान शिव से ये प्रार्थना  की वो शुंभ, निशुंभ और रक्तसुर का वध करे तब भगवान शिव ने ये कार्य माता पार्वती को सौंप दिया माता पार्वती ने शिव की आज्ञा मानकर शुंभ, निशुंभ का वध कर दिया ।   किन्तु माता पहली बार में रक्तसुर का वध नहीं कर सकेगी क्योंकि रक्तसुर के रक्त की बूंद जहाँ पड़ती  ।

वहाँ रक्तसुर सुर का जन्म होता तब माता  पार्वती  ने कालरात्रि का रूप धारण किया और वो रक्तसुर का वध करने पहुंची माता रानी ने रक्तसुर का वंध करते ही उसकी एक बूंद जमीन पर पड़ने से पहले ही उसका पान कर लिया ।  और इस तरह माता कालरात्रि ने रक्तसुर का वध कर दिया चारों तरफ माता कालरात्रि के जयकार- जयकार होने लगे और माता कालरात्रि को दृष्टो का नाश करने के नाम से जाना जाने लगा ।

ये भी पढ़े :

कुम्भ राशि के जातक कभी न करें ये काम !


कब है गणगौर तीज ? जानें तिथि,महत्व एवं व्रत कथा

जानें कुम्भ काल में महाभद्रा क्यों बन जाती है गंगा ?

  • 100% Authentic
  • Payment Protection
  • Privacy Protection
  • Help & Support
विज्ञापन
विज्ञापन


फ्री टूल्स

विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms and Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।

Agree
X