एक द्वीप पर स्थित है । इस स्थान की बहुत महत्वता है। इस स्थान को गंगासागर इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर गंगा सागर में आकर मिलती हैं । इसके साथ ही यहाँ कपिल मुनी का आश्रम भी है । गंगासागर तीर्थ स्थल के पीछे एक पौराणिक कथा है । आइए जानते है यहाँ की पौराणिक कथा ।
हिन्दू धर्म के ग्रंथों के हिसाब से भगवान विष्णु धरती पर कपिल मुनि के रूप में अवतरित हुए थे। वहीं पर भगवान विष्णु ने अपना आश्रम बनाया और तपस्या में लीन हो गए। इसी दौरान मृत्युलोक में राजा सागर अपने कामों की वजह से सर्वाधिक पुण्य प्राप्त कर रहे थे। जिसके कारण देवताओं के राजा इंद्र को स्वर्ग की गद्दी उनसे छीनने का भय सताने लगा। इस खतरे को टालने के लिए देवरत इंद्र ने एक चाल चली उन्होनें राजा सागर के बलि में चढ़ाए जाने वाला अश्व चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम के पास छोड़ दिया।
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इसके बाद राजा सागर ने अपने 60000 पुत्रों को उस अश्व को ढूंढकर वापस लाने का आदेश दिया। राजा सागर के पुत्रों को यज्ञ का अश्व कपिल मुनि के आश्रम के पास मिला, तो उन्होंने अश्व को चोरी करने का आरोप कपिल मुनि पर लगाया। देवरत इंद्र की इस चाल से अनजान कपिल मुनि इस झूठे आरोप से क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा सागर के सभी पुत्रों को अपने क्रोध की अग्नी से भस्म कर दिया। जब कपिल मुनि को असल बात पता चली तो वह अपना श्राप वापस तो नहीं ले सकते थे, इसलिए उन्होंने राजा सागर को उनके पुत्रों को मोक्ष दिलाने का उपाय बताया।
कपिल मुनि ने कहाँ कि यदि माता गंगा धरती पर जल के रूप में उतर कर आपके पुत्रों की अस्थियों को स्पर्श करती हैं तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने के लिए राजा सागर के वंशज राजा भगीरथ ने घोर तपस्या की ताकि मां गंगा धरती पर आए। भागीरथ के तप से प्रसन्न होकर देवी गंगा धरती पर उतरी और उनके स्पर्श से राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
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