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यहाँ दर्शन न की जाएं तो अधूरी रह जाएगी चार धाम की यात्रा

Myjyotish Expert Updated 06 Oct 2020 06:47 PM IST
astrology
astrology - फोटो : Myjyotish
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हिन्दू धर्म में आदि पांच देवों में भगवान गणेश , भगवान विष्णु , माता दुर्गा , भगवान शिव और सूर्यदेव शामिल है । और चार धामों में बद्रीनाथ , जगन्नाथ , द्वारिका और रामेश्वरम शामिल हैं । भगवान शिव को संहार का देवता माना जाता है ,इनके अनेक ज्योतिर्लिंगों में से एक शिवलिंग ऐसा है जिसे माना जाता है कि इसके दर्शन नहीं किये तो चार धाम की यात्रा सफल नहीं होगी।

कहा जाता है कि चार धामों में लोग जिन  केदारनाथ के दर्शन करते हैं , उनका भगवान पशुपतिनाथ से विशेष संबंध है । शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव के एक ही शिव विग्रह का शिरोभाग पशुपतिनाथ हैं । इसलिए चारधाम की यात्रा के बाद इनके दर्शन महत्वपूर्ण माने गए हैं।

शिवपुराण में पशुपतिनाथ और बद्रीनाथ का महत्व बताया गया हैं । इसके अनुसार जब पांडव हिमाचल के पास पहुँचकर केदारनाथ के दर्शन के लिए आगे बढ़े तो भगवान शिव ने उन्हें देखकर भैसे का रूप धर लिया और भागने लगें । पांडवो ने उनकी पूछ पकड़कर बार-बार उनसे प्राथना की तब जाकर शिव जी वहाँ नीचे की ओर मुंह कर विराजमान हुए और इनका शिरोभाग नेपाल में पहुँचकर पशुपतिनाथ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।

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इनका ज़िक्र स्कन्द पुराण में भी है कहा जाता है कि एक बार भगवान शंकर और पार्वती जी मृग बनकर विहार कर रहे थे ,इससे बाकी देवगण उनको अपने साथ न पाकर दुखी हो गए और उन्हें ढूंढने निकले । भगवान शिव उन्हें मृग रूप में मिले , ब्रह्मा , विष्णु और इंद्र देव ने उन्हें पकड़ना चाहा तो वो उछलकर बागमती  के पश्मिनी तट पर पहुँच गए और वही स्थापित हो गए।

ऐसा कहा जाता है कि पशुपतिनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा ग्वालों ने कारवाई थी फिर किरात राजाओं और आगे आए मल्ल वंश के शाशकों ने यह मंदिर निर्माण कराया था।

यह मंदिर काठमांडू शहर से 5 किमी दूर बागमती नदी  के पश्मिनी तट पर स्थित है । यह मंदिर नेपाली वास्तुकला से निर्मित हैं । इसके अलावा पशुपतिनाथ क्षेत्र में अन्य यात्रा भी होती है जैसे वैशाख शुल्क , आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को त्रिशूल यात्रा , गंगा माई यात्रा , गाई यात्रा , नवदुर्गा यात्रा ।

भगवान पशुपतिनाथ देवों के देव महादेव का रूप माना जाता हैं और इसका प्रमाण महिमागान समग्र वैदिक , पौराणिक ग्रंथों में भी पाया जाता है शुक्ल यजुर्वेद का 16वां अध्याय पूरा भगवान पशुपतिनाथ को ही समर्पित हैं।

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