नवरात्रि के समापन की पूजा देवी सिद्धिदात्री की आराधना से की जाती है। इस दिन कन्याओं को हलवा पूरी का भोग खिलाया जाता है। नवरात्र के नौ दिनों का उपवास रखने वाले इस दिन कन्या पूजन के बाद अपना व्रत खोलते हैं। देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप बहुत ही सौम्य और आकर्षक है। वह चार भुजाओं वाली हैं। उनके दो हाथों में चक्र और गदा है तो बाकि दोनों हाथों में वह शंख और फूल धारण किए हुए हैं। देवी सिद्धिदात्री सिंह की सवारी करती हैं।
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प्रत्येक मनुष्य को मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयास करना चाहिए । उनकी आराधना की ओर अग्रसर होना चाहिए । देवी की कृपा से भक्त अनंत दुःखों से मुक्ति प्राप्तकर संसार के सभी सुखों के साथ मोक्ष का मार्ग प्राप्त कर सकता है। नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना करते हैं।
देवी सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्ति के पश्चात भक्तों में किसी प्रकार की इच्छा शेष नहीं रह जाती। वह अंतरमन से केवल माँ का ध्यान करता है क्योंकि उसकी सांसारिक सभी इच्छाएं देवी की सिद्धियों से पहले ही पूर्ण हो चुकी होती हैं। नवरात्रि में देवी की पूजा से बहुत लाभ होता है। उसके जीवन की सभी कठिनाइया दूर हो जाती हैं। उसका संसार खुशियों से भर जाता है। घर में सुख शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
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