पौराणिक कथाएं व मान्यताएं !
पौराणिक कथाओं के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंगों में मल्लिकार्जुन ही एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां भगवान शिव और शक्ति यानी माता पार्वती दोनों ही एक साथ विराजमान हैं। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग की मान्यता और बढ़ जाती है। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। महाभारत के अनुसार मान्यता है कि श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से अश्वमेध यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। मंदिर के निकट ही 51 शक्तिपीठों में से एक माता जगदम्बा का मंदिर है। माता पार्वती यहां ब्रह्मराम्बा या ब्रह्मराम्बिका कहलाती है। मान्यता ये भी है कि यहां बहने वाली कृष्णा नदी को पाताल गंगा भी कहा जाता है।
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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga Significance)
प्रचलित कथाएं-
कथाओं के अनुसार भगवान शंकर के दोनों पुत्रों भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय के बीच पहले शादी करने को लेकर दोनों के बीच विवाद हो गया। कि मेरा विवाह पहले होगा। हमने कई बार अपने घरों में बड़े बुजुर्गों से ये कहानी सुनी होगी कि नारद जी द्वारा बतलाये गये सुझाव की जो सबसे पहले पृथ्वी के तीन चक्कर लगाकर आएगा वही विजेता घोषित होगा और उसकी पहले शादी करा दी जाएगी। इस बात को लेकर दोनों भाइयों के बीच श्रेष्ठता को लेकर स्पर्धा शुरू हो गई। ओर कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर बैठ कर परिक्रमा करने निकल पड़े। और इधर भगवान गणेश रास्ते में अपने वाहन मूसक की वजह से चिंतित लग रहे थे। तभी भगवान नारद ने गणेश जी को बतलाया कि आपके माता-पिता के शरीर में ही सब तीर्थ रहते हैं। आप उन्हीं के दर्शन व पूजन कर उनकी परिक्रमा करें। तब वो रास्ते से ही वापस लौट कर आ गये। ओर एक ऊंचे स्थान पर आसान बिछा कर भगवान शंकर माता पार्वती को आसान पर बिठा कर उनके चरणों में पुष्प अर्पित कर। उनकी 7 बार परिक्रमा पूरी कर आशीर्वाद प्राप्त किया। और रिद्धि-शिद्धि से विवाह किया। तभी से ऐसा माना जाता है कि जो भी अपने माता पिता के 7 बार परिक्रमा करेगा उसे पृथ्वी की 3 परिक्रमा जितना फल प्राप्त होगा। जब कार्तिकेय परिक्रमा कर वापस आये तो गणेश जी को विवाहित देख कर अत्यंत क्रोधित होकर 'क्रोंच' पर्वत पर आकर रहने लगे। कई देवताओं द्वारा उनके लौट आने की गई चेष्टा की किन्तु भगवान कार्तिकेय नही माने। तब भगवान शिव और माता पार्वती पुत्र वियोग में दोनों क्रोंच पर्वत की ओर चल पड़े। माता पिता के आगमन की जानकारी पा कर कार्तिकेय ओर दूर चले गए। अंत में पुत्र दर्शन की लालसा में भगवान शिव वहां ज्योति रूप में उसी पर्वत पर रहने लगे। मान्यता है कि अमावस्या को भगवान शिव और पूर्णिमा को माता पार्वती वहाँ स्वयं आती हैं। तभी से इसका नाम ज्योतिर्लिंग बोला जाने लगा। बताया जाता है कि राजा चंद्रगुप्त की पुत्री किसी विपत्ति से बचने के लिए उसी पर्वत पर रहती थी और वही उसे ज्योतिर्लिंग मिला। तभी से वो आजीवन शिव भक्त हो गई और भव्य मलिकार्जुन मंदिर का निर्माण करया । यहां पूजा अर्चना करने से विवाह और दाम्पत्य जीवन में सुख मिलता है।
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