क्यों मनाई जाती है शिवरात्रि -
वैसे तो कई शिवरात्रि के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं लेकिन सबसे ज्यादा मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसी दिन के बाद भोलेनाथ ने वैरागी जीवन को त्याग कर गृहस्थ जीवन की शुरुआत की थी। शिवरात्रि को शिव और शक्ति यानी (माता पार्वती) के मिलन की रात्रि माना जाता है, इस कारण रात्रि के चारो प्रहर की गई पूजा को पूर्ण पूजा कहा जाता है। कहते है कि इस दिन व्रत रखने से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं, और मनचाहा जीवन साथी मिलता है। इसलिए जिनका विवाह न हो रहा हो तो वह शिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती की आराधना अवश्य करें। उन पर भोले नाथ अवश्य कृपा करते हैं। यह व्रत बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी कर सकते हैं।
शिवरात्रि के पूजन की विधि -
शिवरात्रि का पर्व चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। लेकिन त्रयोदशी तिथि को व्रत करने का संकल्प करना चाहिेए। फिर चतुर्दशी यानि शिवरात्रि के दिन नित्तकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके पूजन करना चाहिए, तथा निराहार व्रत करना चाहिए। शिवरात्रि को रात्रि में चारो प्रहर में चार बार शिव की पूजा करने का प्रावधान है। शिव को पंचामृत से स्नान कराते हुए ऊं नमः शिवाय मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। इस दिन शिवलिंग पर गंगा जल जरूर चढ़ाना चाहिए। शिवरात्रि के अगले दिन प्रातः काल ब्राहम्णों को दान देने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए। पूजा कुशा के आसन पर बैठकर करें। पूजा करने के बाद क्षमा मंत्र जरूर पढ़ना चाहिए। इसमें पूजा के दौरान हुई त्रुटियों के लिए क्षमा मांगी जाती है।
शिवरात्रि तिथि और व्रत का समय -
इस बार शिवरात्रि 21 फरवरी को मनाई जाएगी।
व्रत का समय- प्रातः काल से लेकर रात्रि के चारों प्रहर तक
पूजा करते समय क्या चढ़ाना चाहिए
धतूरा, भांग, बेर, पुष्प, पंचमेवा, पंचामृत, गंगाजल, गन्ने का रस, कपूर, धूप-दीप माता पार्वती और भगवान शिव का श्रृंगार का सामान। आदि सभी चीजें शिवरात्रि को अर्पित करनी चाहिए। पूजा के समय शिव के मंत्र का सच्चे मन से जाप करना चाहिए।
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