मेवाड़ की धरती पर जन्मा एक साहसी वीर जिसने अकबर तक को अपने सामने झुकने को विवश कर दिया जिसके पराक्रम के आगे बड़े -बड़े पराक्रमी खडे़ होने की हिम्मत नहीं करते थे ।
आज हम जानेगें उस वीर पुरुष के पराक्रम से जुड़े कुछ किस्से जिससे आप है अनजान
महाराणा प्रताप की जन्म तिथि को लेकर कुछ भ्रांतिया है जूलियन कैलेंडर की दृष्टि में देखा जाएं तो महाराणा प्रताप का जन्म 9 म ई 1940 हो हुआ थाजबकि प्रोलेप्टिक ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, उनका जन्म 19 मई, 1540 को उनका जन्म हुआ था।जबकि इसके विपरीत हिंदी पंचांग के मुताबिक महाराणा प्रताप का जन्म विक्रम संवत 1597 की ज्येष्ठ मास, शुक्लपक्ष की तृतीय को हुआ था ∣ इस हिसाब से अंग्रेजी कैलैंडर के अनुसार इस वर्ष महाराणा प्रताप का जन्म 12 जून को मनाया जायेगा।
किस्से
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ के कुंभलगढ़ में हुआ था ∣ उनके पिता महाराणा उदयप्रताप सिंह और माँ महारानी जयवंती बाई थीं जयवंती बाई महज मां ही नहीं, आपितु प्रताप की गुरू भी थीं. उन्हीं के निर्देशन में राणा प्रताप में नेतृत्व के गुण , शौर्यता और साहस विकसित हुए। बच्चों के साथ खेलते समय भी वे एक नेता बनकर टीम तैयार कर सबकी जिम्मेदारी और भूमिका समझाते थे बचपन में ही उन्होंने अस्त्र-शस्त्र और आर्मी ट्रैनिंग चलाने की योग्यता प्राप्त कर ली थी यह राणा प्रताप की शौर्यता ही थी कि सिसोदिया वंश के राणा परिवार में बाप्पा रावल, राणा हमीर, राणा सांगा और राणा प्रताप के बीच ‘महाराणा’ की उपाधि राणाप्रताप को ही मिली थी ।
राणा प्रताप को झुकाने की अकबर की कूटनीति बेअसर हुई
मुगल शासकों की भारत के छोटे-छोटे रियासतों को तोड़कर उन पर कब्जा जमाने की नीति में हमेशा सफल रहे । यही नीति उन्होंने मेवाड़ में अपनाई उसने महाराणा प्रताप के परिवार के टोडरमल, जयसिंह आदि को तोड़कर अपने में मिला लिया। लेकिन अकेले पड़ चुके महाराणा प्रताप झुके नहीं उन्होंने जंगली भीलों को जंगलों में ट्रेनिंग देकर नयी सेना तैयार की वे अकसर छापामार युद्ध करते और मुगल सिपाहियों की नींद हराम कर जंगलों में गुम हो जाते थे । ज्यों ही वे मुगल सैनिकों को निश्चिंत देखते अचानक नयी तकनीक से उन पर हमला कर देते थे उनकी इस नीति से अकबर भी परेशान रहता था।
मेवाड़ के बदले आधा हिंदुस्तान देने को क्यों तैयार था अकबर?
दिल्ली में शासन कर रहे अकबर के लिए मेवाड़ जमीनी रूप से बहुत महत्वपूर्ण था ∣ क्योंकि वेस्टर्न इलाके से किसी भी वस्तु के व्यापार के लिए अकबर के व्यापारियों को मेवाड़ से ही होकर जाना पड़ता था ∣ यह कार्य बिना मेवाड़ को जीते संभव नहीं था, और राणा प्रताप के रहते मेवाड़ को जीतना नामुमकिन मान लिया था ∣ अकबर ने वरना देश के बाकी हिस्सों के राजाओं की भोग-विलास की कमजोरियों का फायदा उठाकर अकबर ने बड़ी आसानी से उनके रियासतों पर कब्जा कर लिया था ∣ उसने यह नीति राणा प्रताप पर भी अपनाने की कोशिश की लेकिन महाराणा प्रताप के वैरागी जीवन के सामने अकबर के सारी चालें बेकार हो जाती थीं, और महाराणा की शक्ति थी भील सेना, जिसका हर सिपाही महाराणा के एक इशारे पर जाने देने को तत्पर हो जाता था ∣ अकबर ने महाराणा प्रताप से समझौते के लिए 8 बार कोशिश की, इसके लिए उसने टोडरमल, मानसिंह, जलाल खान, कोरची, भगवान दास को भेजा । लेकिन महाराणा प्रताप हर प्रस्ताव का जवाब तलवार से देते थे कहा जाता है कि एक बार तो अकबर ने मेवाड़ के बदले आधा हिंदुस्तान तक देने की बात कही, मगर राणा प्रताप उसके आगे कभी नहीं झुके ।
अब्राहम लिंकन की माँ ने राणा प्रताप के लिए ऐसा क्यों कहा?
महाराणा प्रताप के मेवाड़ की चर्चा के संदर्भ में एक छोटी मगर प्रेरक घटना है ∣ एक बार अब्राहम लिंकन भारत यात्रा पर जा रहे थे, तब उन्होंने अपनी माँ से पूछा था कि हिंदुस्तान से कोई चीज चाहिए? माँ अगर तुम्हें फुर्सत मिले तो हल्दी घाटी से थोड़ी मिट्टी जरूर ले आना क्योंकि उस मिट्टी की महिमा अपरंपार है मैं राणाप्रताप को सैल्यूट करती हूं जिसने अपनी छोटी-सी जमीन के लिए अकबर के आधे हिंदुस्तान के प्रस्ताव को ठुकरा दिया मैं देखना चाहती हूं कि आखिर उस मिट्टी में ऐसा क्या है, जिसने इतने शूरवीर पैदा किये ।
अकबर क्यों नहीं आता था राणा प्रताप के सामने?
साल 1576 के हल्दी घाटी में अकबर की 80 हजार सेना मेवाड़ की 15 हजार सेना को नियंत्रित करने में असफल रही अकबर कभी भी राणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका इतिहासकार बताते हैं ∣ महाराणा प्रताप की युद्ध शैली जबरदस्त थी उनकी छापामार अथवा द्विकंटक नीति से अचानक हुए हमलों से दुश्मन के पांव उखड़ जाते थे । महाराणा प्रताप काफी बलशाली थे साढे सात फिट ऊंचे और 120 किलो वजन वाले राणा प्रताप जब अपनी दोधारी भारी-भरकम तलवार से दुश्मनों पर हमला करते तो एक ही वार सैनिक को उसके घोड़े के साथ काट देते थे कहते हैं कि अकबर इसीलिए महाराणा प्रताप के सामने नहीं आता था, क्योंकि उसका कद छोटा था ∣ उसे भय था कि राणा प्रताप अपनी तलवार से एक वार में ही उसे हाथी-घोड़े समेत काट देंगे।
कौन था महाराणा प्रताप का करीबी ‘राम प्रसाद’
हल्दी घाटी की युद्ध में महाराणा प्रताप के प्रिय अफगानी घोड़े चेतक के तमाम किस्से मशहूर हैं, लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि चेतक की तरह राम प्रसाद भी उन्हें बहुत प्रिय था ∣ राम प्रसाद वास्तव में एक हाथी था ∣ दरअसल उन दिनों लड़ाई में हाथी के सूंड़ में तलवार बांध दिया जाता था, जिससे हाथी सामने आने वाले सैनिक, घोड़े या हाथियों को काटते चले जाते थे एक बार राम प्रसाद पर सवार होकर राणा प्रताप युद्ध कर रहे थे, उस दिन राम प्रसाद ने 8 हाथियों एवं घोड़ों घोड़ों को काट डाला। यह दृश्य देखकर अकबर ने रामप्रसाद को हासिल करने का आदेश दिया अगले दिन 12 हाथियों के चक्रव्यूह के बीच रामप्रसाद को घेर कर पकड़ लिया गया राम प्रसाद को बांधकर अकबर के सामने लाया गया। अकबर ने रामप्रसाद का नाम बदलकर पीर रख दिया, और सैनिकों को हिदायत दिया कि इसे कुछ भी खिला-पिलाकर स्वस्थ कर अपने लिए तैयार करो लेकिन महाराणा प्रताप से बिछुड़ने के गम में राम प्रसाद ने खाना-पीना छोड़ दिया। अत्यधिक कमजोर होने के कारण 28 दिनों के बाद उसकी मृत्यु हो गयी। इस खबर ने अकबर को द्रवित कर दिया उसने कहा, जिस महाराणा प्रताप का हाथी मेरे सामने नहीं झुका, उस महाराणा प्रताप का सिर मैं कैसे झुकवा सकता हूं ।
निधन
महाराणा प्रताप पर विजय नहीं हासिल होने के कारण अकबर ने अपने व्यापार की दिशा बदल दी । महाराणा प्रताप पुनः मेवाड़ के सिंहासन पर बैठे एक दिन शेर के शिकार के लिए जाते समय उनकी एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई ये खबर जब अकबर को मिली तो वह बहुत रोया। उसने एक चिट्ठी मेवाड़ भिजवाई, उसने लिखा,- महाराणा प्रताप एक बहुत शक्तिशाली, मेधावी और बहादुर राजा थे, जिन्होंने अपने गौरव को कभी झुकने नहीं दिया मुझे इस बात का जीवन भर दुख रहेगा कि शक्तिशाली सेनाओं का साथ होते हुए भी मैं उऩ्हें कभी हरा नहीं सका ।