कुंभ मेला परंपराओं, अनुष्ठानों और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं, विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता के साथ मिलकर एक सम्मेलन बना है। यह मेले का आयोजन भारत के प्रमुख तीर्थ स्थानों नाशिक, हरिद्वार, प्रयागराज और उज्जैन शामिल है। माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान जो अमृत की प्राप्ति हुई थी उसकी कुछ बुँदे इन पवित्र जगहों पर जा गिरी और इसलिए यहाँ के पवित्र नदी में डुबकी लगाने से सारे दुख दूर हो जाते हैं।
कुम्भ मेला के दौरान भिन्न समारोह मनाया जाता है जिसमे घोड़े, हाथी और रथों की पेशवाई होती है। इसके साथ ही नागा साधुओं के शो, अखाड़ों की भी जुलुस भी शामिल है। बता दें कि यह सभी कार्य पुण्य का प्रतीक होता है। यह नदियों और जंगलों के प्रवाह को भी दर्शाता है, प्रकृति और मानव जीवन के बीच संबंध और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाता है।
कुम्भ मेले के अनुष्ठान
स्नान
कुम्भ में स्नान करना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है और सबसे बड़ा अनुष्ठान भी माना जाता है। भक्तों की इससे श्रद्धा जुड़ी होती है, ऐसा मानना है कि यहां के पवित्र नदी में डुबकी लगाने से उनके सारे पाप धूल जाएंगे और साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति हो जाएगी।
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आरती
हिन्दू धर्म में कोई भी त्योहार या पूजा समारोह बिना आरती किये अधूरा माना जाता है। कुम्भ में भी इसका सबसे बड़ा महत्त्व होता है, लोग नदी तट पर आरती करके नदियों के प्रति अपनी कृतज्ञता और समर्पण प्रदर्शित करते हैं। कुंभ में आरती के दौरान हजारों की तादाद में लोग मौजूद होते हैं और भगवान की हो जाते हैं।
दीप दान
मेले के दौरान लोग बड़े ही श्रद्धा पूर्वक दीप दान का कार्य करते हैं। इसका अर्थ होता है आध्यात्मिकता फैलाना, कई पवित्र स्थानों पर मिटटी के दीप जलाए जाते हैं। कुम्भ के दौरान यह सबसे मंत्रमुग्ध दृश्यों में से एक है।
कल्पवास
यह अवधि माघ महीने में पूर्णिमा की एकादशी से माघी एकादशी तह होती है। यह नदियों के संगम पर सबसे पवित्र माना जाता है। यह 21 नियमों का एक समूह है, जिसे कल्पवासियों को ब्रह्मचर्य, सत्यवादिता, अहिंसा, सभी बुरे सुखों का त्याग और ब्रह्मचारी नियमों की एक पूरी सूची की तरह देखना पड़ता है।
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