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व्रत महिलाएं अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत के रुप में मनाती हैं. पूजा के लिए नाग-नागिन,गौरी, शिव की मूर्तियां बनाई जाती हैं और फिर इनके पूजन के लिए फूल, मिठाइयां और फलों को भोग स्वरुप रखा जाता है. पूजा के लिए रोज नए पुष्पों का उपयोग किया जाता है. मधुश्रावणी की कथा सुनते हुए पूजन होता है. पूजन के आठवें और नौवें दिन प्रसाद के रूप में भगवान को प्रसाद के रूप में कुछ स्थानों पर रसगुल्लों का भोग लगाया जाता है. आइए जानते हैं कैसे मनाया जाता है मधुश्रावणी व्रत
मधुश्रावणी व्रत 2023 व्रत तिथि
इस साल इस व्रत की शुरुआत 7 जुलाई को होगी ओर इसकी समाप्ति 19 अगस्त के दिन होगी. अधिकमास होने के कारण इस व्रत को डेढ़ मास तक रखा जाएगा. मधुश्रावणी व्रत मैथिल में नई दुलहनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. आस्था का पर्व मधुश्रावणी इस बार अधिकमास होने के चलते डेढ़ महीने तक रहेगा. ऐसा 19 साल बाद होगा, कि इस पर्व को एक महीने से भी अधिक समय तक किया जाएगा. मधुश्रावणी का आरंभ सावन के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से हो जाता है और इसकी समाप्ति सावन शुक्ल पक्ष की तृतिया तिथि को होती है.
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व्रत विधि महत्व
परंपराओं के अनुसार इस व्रत का बेहद विशेष महत्व रहा है. मधुश्रावणी व्रतियों को इस बार करीब डेढ़ महीने तक यह व्रत रखना होगा. व्रत के दौरान महिलाएं प्रतिदिन बगीचों से फूल-पत्तियां चुनती हैं और विषहरा यानी सांपों और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. 15 दिनों की इस पूजा के दौरान नवविवाहितों को नाग देवता की कहानी सुनाई जाती है, जबकि बाकी दिनों में सावित्री, सत्यवान, शंकर-पावर्ती, राम-सीता, राधा-कृष्ण जैसे देवताओं की कहानियां सुनाई जाती हैं.