वेदों के अनुसार, शादी से पहले कुंडली मिलाना महत्वूर्ण सिद्धांत है। ये इस बात को निश्चित करता है कि शुद्धतः दोनों रिश्ते एक दूरसे के अनुरूप है या नही, ताकि वे एक सुखद और शांति जीवन यापन कर सकें। किसी कारण वस दोनों एक दूसरे एक प्रतिकूल हैं, तो उनको उपचार दिया जाता है ताकि अशुभ दोषों से मुक्ति मिल सके।
गुण का मिलना दूल्हे और दुल्हन के चन्द्रमा के स्थिति पर निर्भर करता है।
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गुण मिलन कि इस प्रक्रिया को 'अष्टकूट मिलन' कहा जाता है, जहाँ 'अष्ट' का मतलब आठ और कूट का मतलब पहलू, है, जो कि इस प्रकार हैं : -
- वर्ण कूट : ये हमें जोड़े के द्वेष के अस्तर के अनुसार उनके अध्यात्म में होने कि स्थिति के बारे में मदद करता है।
- वैश्य कूट : ये कूट ये बताने में मदद करता है कि दोनों के बिच आपसी आकर्षण कितना है और दोनों के रिश्ते कितने सुदृढ़ हैं।
- तारा कूट : यह जोड़े के जन्म नक्षत्र की अनुकूलता और भाग्य की गणना करने में मदद करता है, नक्षत्रों कि संख्या २७ है। दुल्हन के नक्षत्र को दूल्हे के नक्षत्र से गणना करके प्राप्त उत्तर को ९ से विभाजित किया जाता है। यही प्रक्रिया दूल्हे के लिए भी कि जाती है। अगर दोनों के परिणाम सम संख्या में आते हैं तो जोड़े का अनुकूल परिणाम ३ है। अगर परिणाम विषम संख्या में अत है वो अनुकूलित परिणाम शून्य है।
- योनि कूट : इसका उपयोग जोड़े के यौन सम्बन्ध के अनुकूलता मापने के लिए किया जाता है। जिसको १४ जानवरों के तौर पर बाटा गया है, जो इस प्रकार हैं - घोड़ा, हाथी, भेड़, सांप, कुत्ता, बिल्ली, चूहा, गाय, भैंस, बाघ, हरे / हिरण, बंदर, शेर, नेवला। अगर युगल जोड़े एक ही जानवर के श्रेणी में आते हैं तो उनका स्कोर ४ है, और अगर विपरीत आता है तो स्कोर शून्य है।
- ग्रह मैत्री : इस कूट के अंतर्गत मासिक अनुकूलन और व्यावहारिक भाव को मापा जाता है, जिसके आधार पर ये माना जाता है कि राशियों के मालिक दोस्त हैं या दुश्मन, जिनकी राशियाँ मित्र होती हैं उनको ५ नंबर दिया जाता है, और जो दुश्मन होती हैं उनको शून्य।
- गण कूट : इस कूट के अंतर्गत जोड़े के अभिभावक का व्यवहार और स्वाभाव का आकलन किया जाता है, जन्म नक्षत्रों को ३ भागों में बाटा गया है - भगवान, इंसान और राक्षस। वर और वधु के समान गुण होने पर ६ अंक दिए जाते हैं।
- राशि कूट : ये कूट वर और वधु के भावनात्मक अनुकूलन और प्यार का आंकलन करता है। साथ ही साथ दोनों के जन्म कुंडली के ग्रहों कि तुलना कि जाती है, अगर वर का चन्द्रमा वधु के दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवे और छठे भाग में होता है तो यह शुभ नहीं माना जाता है। वहीँ दूसरी तरफ 7वें और 12वें भाव को शुभ माना जाता है। यदि कन्या का चन्द्रमा वर की कुण्डली से दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें और छठे भाव में हो तो शुभ होता है। जबकि, दूल्हे की कुण्डली में 12वें भाव में होना अशुभ होगा।
- नाड़ी कोटा : ये कूट स्वाथ्य और जनन से सम्बंधित स्थितियों का आकलन करता है। जोड़ों के नक्षत्र को ३ भागों में विभाजित किया गया है - आदि नाड़ी, पित्त नाड़ी, अन्त्य नाड़ी। सामान नाड़ी वाले जोड़े को कोई अंक नहीं जाता है और आसमान नाड़ी वाले को ८ अंक प्रदान किया जाता है।
वे जोड़े जो १८ से कम अंक पाएं हैं उनके शादी के लिए सिफारिस नहीं कि जाती है, क्योंकि बाद में समस्याएं आने कि सम्भावना होती है। १८-२४ अंक पाने वाले जोड़ो को शादी होने कि सम्भावना होती है। यद्यपि कि ऐसा माना जाता है कि 24-32 अंक जिसको मिलता है उनका वैवाहिक जीवन अच्छा होता है। 32-36 अंक को श्रेष्ट अंक माना जाता है।
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