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भारतीय पूर्वजों ने सोच समझकर बनाई थी कुंभ मेलों की प्रथा

Myjyotish Expert Updated 09 Feb 2021 11:04 AM IST
Kumbh Mela
Kumbh Mela - फोटो : Myjyotish
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भारतवर्ष धर्मों का देश है। यहां की पृथ्वी के कण-कण मविन धर्म बसता है। देखा जाए तो विश्व के कई देशों में तीर्थ हैं, पर भारतवर्ष में तीर्थ स्थानों का विशेष महत्त्व है। तीर्थ का अर्थ है - पौराणिक महत्त्व के साथ आध्यात्मिक शक्ति से ओतप्रोत होना। तीर्थों से सैकड़ों भक्तों की आस्था जुड़ी होती हैं।  

भारत के लोग जितनी तीर्थयात्राएं करते हैं उतनी कहीं और नहीं होती। भारत में अनेक धार्मिक तथा ऐतिहासिक धाम तीर्थ स्थान हैं। जहां लाखों यात्रा कर अपनी इच्छाएं पूर्ण करते हैं। हमारे ऋषियों, मुनियों ने बहुत ही विचार करके तीर्थ यात्रायों का आदेश दिया था। वे जानते थे कि यात्रा के अनेक लाभ हैं।  

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इससे यात्रियों को धार्मिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक स्थितियों का सामयिक ज्ञान तो होता ही है, साथ ही देवी-देवताओं के मंदिर के सामने जाकर श्रद्धा से नतमस्तक हो अपने कालुष्य का विसर्जन कर कुछ समय के लिए वे आत्म विस्मृत होकर इस लोक से उस लोक तक पहुंचते हैं। इससे उनके मन पर सात्विक प्रभाव पड़ता है। हृदय में संसार की भंगुरता मिथ्या अस्तित्व का ज्ञानोदय होता है। भविष्य के जीवन को ऊंचा उठाने की आशा बंधती है। 

मेलों की परंपरा चिरकाल से चली आ रही है। कुंभ पर्व का भी इतिहास बहुत पुराना है। कहा जाता है कि छठी शताब्दी में प्रयागराज कुंभ का आयोजन प्रारंभ हुआ था। 

इस वर्ष देवभूमि हरिद्वार में कुंभ महापर्व का आयोजन हिने वाला है। ये कई मायनों में हरिद्वार कुंभ का विशेष महत्त्व रेखांकित करता है। यहीं से पतित पावनी मां गंगा मैदानी क्षेत्र में सर्वप्रथम पधारी थीं और भारत की जीवन रेखा के रूप में अनेकानेक लोगों में जीवन संचार करते हुए बंगाल की खाड़ी तक पहुंचती हैं। इस साल होने वाले कुंभ मेले के चार प्रमुख शाही स्नान की तिथि घोषित हो गयी हैं। पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि- 11 मार्च, दूसरा सोमवती अमावस्या-12 अप्रैल, तीसरा बैशाखी- 14 अप्रैल, चौथा व अंतिम चैत्र पूर्णिमा- 27 अप्रैल को सम्पन्न होना है।

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