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कोरोना के बीच महाकुंभ और शिप्रा का महत्व !

Myjyotish Expert Updated 06 Jan 2021 03:32 PM IST
Astrology
Astrology - फोटो : Myjyotish
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कोरोना के कारण जहां पूरा देश बंद था। अब वो धीरे-धीरे पटरी पर वापस लौट रही है। देश के तमाम निवासियों ने अपने-अपने त्योहारों को सभी सावधानियों को ध्यान में रखते हुएं घरों में ही मनाया। इसी बीच हिंदू धर्म के सबसे पवित्र पर्व कुंभ का आगमन हुआ है। कुंभ पूरी दुनिया में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
इस बार हरिद्वार कुंभ मेले की शुरूआत 14 जनवरी को पड़ रही मकर संक्रांति के पर्व से हो रही है। कोरोना को देखते हुए कुंभ मेले में आने वाले श्रध्दालुओं के लिए पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन प्रवेश द्वार पर स्क्रीनिंग और एंटीजन टेस्ट की व्यवस्था की जाएगी। यह भी व्यवस्था बनाई जाएगी कि श्रद्धालु कोविड जांच कराने के बाद ही कुंभ में स्नान के लिए आएं।

शाही स्नान का महत्वः
कुंभ मेले में शाही स्नान का बहुत ही खास महत्व है। शाही स्नान के समय करीब तेरह अखाड़ों के साधु संत उस पवित्र नदी में स्नान करते हैं जिसके किनारे कुंभ मेले का आयोजन होता है। शाही स्नान के दौरान साधु-संत हाथी- घोड़ो सोने चांदी की पालकियों पर बैठकर स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। एक विशेष मुहूर्त से पहले साधु तट पर इकट्ठा होते हैं और जोर-जोर से नारे लगाते हैं। माना जाता है मुहूर्त में नदी के अंदर डुबकी लगाने से अमरता प्राप्त हो जाती है। यह मुहूर्त लगभग 4 बजे शुरु हो जाता है। साधुओं के बाद आम जनता को स्नान करने का अवसर दिया जाता है।

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शिप्रा का महत्व और कुंभः
स्कंद पुराण में कहा गया है कि सारे भू-मंडल में शिप्रा के समान कोई दूसरी नदी नहीं है जिसके तट पर क्षणभर खड़े रहने मात्र से ही तत्काल मुक्ति मिल जाती है। शिप्रा की उत्पत्ति के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार- एक बार भगवान महाकालेश्वर भिक्षा हेतु बाहर निकले। कहीं भिक्षा न मिलने पर उन्होंने भगवान विष्णु से भिक्षा चाही, पर भगवान विष्णु ने उन्हें तर्जनी दिखा दी। भगवान महाकालेश्वर ने क्रोधित होकर त्रिशूल से उनकी अंगुली काट दी। उससे रक्तधारा प्रवाहित होने लगी। शिवजी ने अपना कपाल उसके नीचे कर दिया। कपाल भर जाने पर रक्तधारा नीचे बहने लगी, तभी से ये 'शिप्रा' कहलाई। कहा गया है- 'विष्णु देहात्समुत्पन्ने शिप्रे त्वं पापनाशिनी'

अर्थात 'भगवान विष्णु की देह से उत्पन्न शिप्रा नदी पापनाशनी है।' शिप्रा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मुक्ति की प्राप्ति होती है। सिंहस्थ पर्व पर शिप्रा में स्नान करने का माहात्म्य तो और भी पुण्यदायक है। इस नदी में स्नान करने से धन-धान्य, पुत्र-पौत्र वृद्धि और मन की शांति मिलती है। इस नदी को अशुद्ध करने पर घोर पाप मिलने का भी शास्त्रों में वर्णन है। सिंहस्थ में आए सभी धर्म प्रेमी जनता से निवेदन है कि नदी की शुद्धता और पवित्रता बनाए रखें और नदी दूषित करने के दोष से बचें।

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