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Home ›   Blogs Hindi ›   Kumbh 2021 : significance of Kumbh Mela

कुम्भ में आने वाले आखाड़ें महत्वपूर्ण क्यों ?

Myjyotish Expert Updated 12 Jan 2021 02:30 PM IST
Astrology
Astrology - फोटो : Myjyotish
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महाकुंभ का मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक पर्व माना जाता है। हरिद्वार में 2021 में होने वाले कुंभ का आयोजन इस बार केवल 48 दिन का ही होगा। 14 जनवरी को हरिद्वार में कुंभ मेले का शुभारंभ होगा।

11 वें साल में लग रहा है कुंभः
पूर्ण कुंभ का आयोजन यूं तो हर 12 साल में किया जाता है। जब मेष राशि में सूर्य और कुंभ राशि में बृहस्पति आता है। तब कुंभ का आयोजन किया जाता है। लेकिन साल 2022 में बृहस्पति कुंभ राशि में नहीं होंगे। जिसके कारण एक साल पहले ही महाकुंभ का आयोजन किया जा रहा है। यानी इस बार 11वें साल में ही कुंभ पड़ेगा। इससे पहले 2010 में कुंभ का आयोजन हुआ था।
कुंभ में शामिल होने वाले आखाड़ेः
कुंभ में शामिल होने 13 अखाड़ों की पेशवाई निकाली जाती है। कुंभ में अखाड़ों के धूमधाम से पंहुचने को ही पेशवाई कहते हैं।
  •  श्रीनिरंजनी अखाड़ा- इसकी स्थापना 826ई. में गुजरात के मांडवी में हुई थी। इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिक हैं। इनमें दिगंबर, साधु, महंत, महामंडलेश्र्वर होते हैं। इनकी शाखाएं इलाहबाद, उज्जैन, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्र्वर व उदायपुर में हैं।
  • श्रीजूनादत्त अखाड़ा- इसकी स्थापना 1145 में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में हुई थी। इसे भैरव अखाड़ा के नाम से भी जाना जाता है। इनके ईष्ट देव रूद्रावतार दत्तात्रेय हैं। हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इनका आश्रम है। इस अखाड़े में पीठाधीश्र्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं।
  • श्रीमहानिर्वाण अखाड़ा- इसकी स्थापना 671ई में हुई थी। इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं। इतिहास के अनुसार सन् 1260 में महंत भगवानंद गिरी के नेतृत्व में 22 हजार नागा साधुओं ने कनखल स्थित मंदिर को आक्रमणकारी सेना के कब्जे से छुड़ाया था।
  • श्रीअटल अखाड़ा- इसकी स्थापना 569ई. में गोंडवाना क्षेत्र में स्थापित किया गया। इनके ईष्ट भगवान गणेश हों। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है लेकिन आश्रम कनखल, हरिद्वार, इलाहबाद, उज्जैन व त्र्यंबकेश्र्वर में भी हैं।
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  • श्रीआह्वान अखाड़ा- इसकी स्तापना 646 में हुई थी और 1603 में पुनर्संयोजित किया गया। इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन दोनों हैं। इसका केंद्र काशी है। इसका आश्रम ऋषिकेश में हैं।
  • श्रीआनंद अखाड़ा- इसकी स्थापना 855 ई. में मध्यप्रदेश के बेरार में हुई थी। इसका केंद्र भी वाराणसी है।
  • श्री पंचाग्नि अखाड़ा- इसकी स्तापना 1136 में हुई थी। इनकी ईष्ट देव गायत्री हैं। इनका प्रधान केंद्र काशी है। इनके सद्स्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी, साधु ब महामंडलेश्र्वर शामिल है।
  • गोरखनाथ अखाड़ा- इसकी स्थापना 866ई मेंअहिल्यागोदावरी संगम पर हुई थी। इसके संस्थापक पीर शिवनाथजी हैं। इनके मुख्य देवता गोरखनाथ हैं और इनमें बारह पंथ शामिल है।
  • श्रीवैष्णव अखाड़ा- इसकी स्थापना 1595 ई में दारागंज में श्री मध्यमुरारी में स्थापित हुई। समय के साथ इसमें निर्मोही, निर्वाणी, खाकी आदि तीन संप्रदाय बने।
  • श्रीउदासीन नया अखाड़ा- इसकी स्थापना 1710 में हुई। इसे बड़ा उदासीन अखाड़ा के कुछ साधुऔं ने अलग होकर बनाया। इनके प्रवर्तक महंत सुधीरदासजी थे।
  • श्रीनिर्मल पंचासती अखाड़ा- इसकी स्थापना 1784 में हुई थी। इनकी ईष्ट पुस्तक श्री गुरूग्रन्थ साहिब है। इसमें सांप्रदायिक साधु और महंत व महामंडलेश्र्वर की संख्या अधिक है।
  • निर्मोही अखाड़ा- इसकी स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। इसके मठ उत्तरप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार में हैं।
  • श्रीउदासीन बड़ा अखाड़ा- इसकी स्थापना 1910 में हुई। इसके संस्थापक श्री चंद्रआचार्य उदासीन हैं।
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